झालावाड़ जिला दर्शन : झालावाड़ जिले की सम्पूर्ण जानकारी
झालावाड़ जिला राजस्थान के दक्षिण पूर्व में मालवा के पठार पर स्थित है। झालावाड़ रियासत का निर्माण अंग्रेजों द्वारा कोटा के मुख्य प्रशासक झाला जालिमसिंह के पौत्र महारावल झाला मदनसिंह के लिए सन् 1838 में कोटा रियासत से पृथक करके हुआ। इसकी राजधानी झालरापाटन बनाई गई थी। झालावाड़ नगर की स्थापना कोटा राज्य के फौजदार व प्रशासक झाला जालिम सिंह द्वारा 1791 ई. में की गई थी। उस समय इसका नाम उम्मेदपुरा की छावनी था। झालावाड़ अंग्रेजों द्वारा राज्य में धौलपुर (1804 ई.) एवं टोंक (1817 ई.) के बाद गठित तीसरी एवं अंतिम रियासत थी। झालावाड़ से 8 किमी. दूर पुण्य सलिला चन्द्रभागा के तट पर मालवा के राजा चन्द्रसेन द्वारा बसाया गया चन्द्रावती नगर प्राचीन भारत की उत्कृष्ट स्थापत्य शिल्प कला का केन्द्र तथा धार्मिक तीर्थ रहा है। झालावाड़, पाटन एवं गंगधार क्षेत्र इतिहासकारों एवं पुरातत्वविदों के लिए पावन तीर्थ व परम रम्य भूमि है। राजस्थान में यही स्थल विशेष है जहाँ पर मंदिरों के प्राचीनतम सूत्र संग्रहीत किए जा सकते हैं।
- झालावाड़ जिले की मानचित्र स्थिति – 23°45’20 से 24°52’17 उत्तरी अक्षांश तथा 75°27’35 से 76°56’48 पूर्वी देशान्तर है।
- क्षेत्रफल : 6219 वर्ग किमी. ।
- झालावाड़ जिले में कुल वनक्षेत्र – 1377.68 वर्ग किलोमीटर
- झालावाड़ के दक्षिण, पश्चिम व दक्षिण-पूर्व में मध्यप्रदेश तथा उत्तर में कोटा व पूर्व में बारां जिला है।
- आहू, काली सिंध व चंद्रभागा नदियाँ यहाँ की मुख्य नदियाँ है।
- भीमसागर, छापी व चौली बाँध यहाँ की मुख्य सिंचाई परियोजनाएँ हैं।
- बिंदौरी झालावाड़ का मुख्य नृत्य है।
झालावाड़ के प्रमुख मेले व त्यौहार
- चंद्रभागा मेला – झालरापाटन
- गागरोन उर्स – गागरोन
- बंगाली बाबा – खानपुर
- गोमती सागर मेला – झालरापाटन
- बसंत पंचमी मेला – भवानीमंडी और अकलेरा
झालावाड़ के प्रमुख मंदिर
- झालरापाटन का वैष्णव मंदिर (पद्मनाभ मंदिर) — इसे सात सहेलियों का मंदिर भी कहते हैं। कर्नल टॉड ने इसे चारभुजा का मंदिर भी कहा है। यह मंदिर कच्छपघात शैली का हैं। जिन मंदिरों में विशालकाय शिखर, मेरू मण्डावर, स्तभों पर घटपल्लवों का अंकन, पंचशाखा द्वार जिनमें से एक सर्पो द्वारा वेष्टित हुआ हों, आदि हो, उन मंदिरों को कच्छपघात शैली का माना जाता है।
- झालरापाटन का शांतिनाथ जैन मंदिर — 10वीं से 12वीं शताब्दी के मध्य बना यह मंदिर कच्छपघात शैली का है। मंदिर के गर्भगृह में काले रंग के पत्थर की आदमकदीय शांतिनाथ दिगम्बर जैन प्रतिमा है।
- कमलनाथ मंदिर — मगवास ग्राम के निकट पर्वत पर यह मंदिर स्थित है। यहाँ वैशाख पूर्णिमा को मेला भरता है।
- चांदखेड़ी का जैन मंदिर — झालावाड़ के खानपुर में यह एक प्राचीन जैन मंदिर है जिसमें आदिनाथ की विशाल प्रतिमा मंदिर बघेरवाल जैन व्यापारी ने 1689 ई. में बनवाना प्रारम्भ किया था।
- चन्द्रभागा मंदिर — चन्द्रभागा नदी के तट पर स्थित सातवीं सदी का मंदिर है। ये गुप्तोत्तरकालीन मंदिर है।
- शीतलेश्वर (चंद्रमौलिश्वर) महादेव मंदिर — चंद्रभागा नदी के तट पर झालावाड़ के इस मंदिर का निर्माण राजा दुर्गण के सामन्त वाप्पक ने महादेव मंदिर वि.स. 746 (689 ई.) में किया था। यह देवालय राजस्थान के तिथियुक्त देवालयों में सबसे प्राचीन है। इस देवालय में चन्द्र और शैव संस्कृति सहित गुप्त व अन्य युगों की कला का प्रभाव दिखाई देता है। यहाँ लकुलीश की काले पत्थर की आकर्षक व सुन्दर प्रतिमा बनी हुई है। देवालय में सबसे आकर्षक चीज है- कीचक। ये सभामंडप के स्तम्भों के ऊपर विशाल पट्टिकाओं को जोड़ने के काम आते है।।
- कायावर्णेश्वर का मंदिर — डग कस्बे के निकट क्यासरा ग्राम में यह मंदिर स्थित है। इस मंदिर में भगवान शिव का बाणलिंग विद्यमान है जिसके विषय में यह प्रसिद्ध है कि इसका आकार प्रति बारह वर्षों में एक सुपारी के बराबर बढ़ता है। लिंग के समीप ही माता पार्वती व गणेश की संगमरमर की प्रतिमाएँ विद्यमान है। पास ही मंदाकिनी कुण्ड है। कहा जाता है कि ब्राह्मणों के शाप से रोगग्रस्त राजा जनमेजय को इसी कुंड में स्नान करने से रोग मुक्ति मिली थी।
- हरिहरेश्वर मंदिर — झालावाड़ के बदराना ग्राम में स्थित मंदिर। इस मंदिर में श्रीमूर्ति विद्यमान है जिसका आधा भाग शिव स्वरूप व आधा भाग विष्णु स्वरूप है । यह मंदिर वैष्णव व शैव सम्प्रदाय के समन्वय का बोधक है इस तीर्थ पर दोनों ही सम्प्रदाय के मतावलम्बी आते हैं। इस मंदिर के समीप मारुति मंदिर है।
- नागेश्वर पार्श्वनाथ — चौमहला (झालावाड़) में प्रसिद्ध जैन तीर्थ नागेश्वर पार्श्वनाथ स्थित है।
झालावाड़ के दर्शनीय एवं पर्यटन स्थल
- भवानी नाट्यशाला — वर्ष 1921 में राजा भवानी सिंह द्वारा पारसी ऑपेरा शैली में निर्मित अनोखी नाट्यशाला।
- झालरापाटन — घटियों का शहर ‘City of Bells’ के नाम से प्रसिद्ध । सन् 1791 में कोटा राज्य के सेनापति जालिम सिंह ने चंद्रावती नगर के ध्वेसावशेषों पर झालरा पाटन नगर की स्थापना की, यह चंद्रभागा नदी के तट पर स्थित है। यहाँ कार्तिक पूर्णिमा को चन्द्रभागा मेला आयोजित होता है।
- डग — दागेश्वरी माता, रानी का मकबरा व कामा वदनेश्वर महादेव के लिए प्रसिद्ध।
- कौल्वी की बौद्ध गुफाएँ — डग पंचायत क्षेत्र में कौल्वी (Kolvi), बिनायगा (Binnayaga), हथियागौड़ (Hathiagor) एवं गुनई में स्थित बौद्ध गुफाएँ एवं स्तूप है। क्यासरा गाँव के निकट पहाड़ की चोटी पर बौद्ध गुफाएँ बनी हैं। इन गुफाओं को राजस्थान का अजन्ता-एलोइ’ कहा जाता है।
- बिनोदी राम बालचंद हवेली — यह हवेली झालावाड़ में है।
- संत मीठेशाह की दरगाह — आहू व काली सिंध नदियों के संगम पर स्थित गागरोन दुर्ग के बाहर सूफी संत मीठेशाह की आकर्षक मज़ार है।
- गढ़ पैलेस — यह 1838-1854 के दौरान महाराजा मदन सिंह व उसके उत्तराधिकारियों ने बनवाया।
महत्वपूर्ण तथ्य :
- राज्य का दूसरा साइंस पार्क झालरापाटन में बनाया गया।
- राज्य की पहली किसान कम्पनी का गठन बकानी, झालावाड़।
- राज्य सरकार ने झालरापाटन को 2006 में हेरिटेज सिटी बनाने की घोषणा की।
- राज्य का तीसरा सुपर पावर थर्मल-झालावाड़ में।
- श्रीमती वसुन्धरा राजे का विधानसभा क्षेत्र-झालरापाटन।
- अफीम को ‘काला सोना’ कहा जाता है, झालावाड़ में अफीम की फसल भी उत्पादित की जाती है।
- सहकारी किसान क्रेडिट कार्ड योजना का शुभारम्भ झालावाड़ जिले से किया गया।
- राजस्थान का एकमात्र अल्पसंख्यक बी.एड.कॉलेज-डॉ. जाकिर हुसैन प्रशिक्षण महाविद्यालय-झालावाड़।
- आलनियां गाँव में पुरापाषाणकालीन पेंटिग प्राप्त हुई है।
- बिन्दौरी लोक नृत्य-झालावाड़ का प्रसिद्ध, होली के अवसर पर।
- गंगधार-यहाँ पर वि.सं. 480 का डाकिनी देवियाँ शिलालेख खोजा गया है।
- संतरा उत्पादन में अग्रणी, इसलिए राजस्थान का नागपुर कहते है।
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