Rajasthan gk : राजस्थानी लिपि एवं भाषा : (Rajasthani script and language)

By | August 13, 2021
Rajasthani script

राजस्थानी लिपि एवं भाषा

राजस्थानी भाषा व लिपि महत्वपूर्ण भाषाओ व लिपियों में से एक है। भावों और विचारों को व्यक्त करने वाले चिह्नों, रेखाओं, चित्रों आदि को लिपि कहा जाता है । इस प्रकार भाषा को अंकित करने। (लिखने) की रीति लिपि कहलाती है। दूसरे शब्दों में भाषा की लिखित अभिव्यक्ति के स्वरूप को लिपि (Script) कहते हैं। प्रत्येक भाषा की अपनी एक विशिष्ट लिपि होती है, जिसके माध्यम से ही भाषा का साहित्यिक रूप प्रकट होता है। हमारे देश की प्रारंभिक लिपियाँ ब्राह्मी लिपि से ही भारत की अन्य लिपियाँ विकसित हुई हैं। वर्तमान देवनागरी लिपि इसी लिपि से क्रमिक रूप से विकसित हुई है। राजस्थानी भाषा की लिपि राजस्थानी लिपि’ के अधिकांश अक्षर (स्वर व व्यंजन) देवनागरी लिपि से मिलते-जुलते हैं। मात्र कुछ अक्षरों की बनावट से थोड़ा अन्तर आता है। धीरे-धीरे हिन्दी के प्रभाव से यह अन्तर भी अब शनैः शनैः मिटता जा रहा है।

  • राजस्थानी लिपि लकीर खींचकर घसीट रूप में लिखी जाती है।
  • इस लिपि का विशुद्ध रूप मुख्य रूप से अदालतों (न्यायालयों) व दफ्तरों (कार्यालयों) में प्रयुक्त किया जाता था, जिसे ‘कामदारी लिपि’ कहा जाता था।

राजस्थानी लिपि में ‘ळ’ अक्षर का विशेष रूप से प्रयोग किया जाता है। ‘ल’ एवं ‘ळ’ की अलग-अलग ध्वनियाँ हैं। दोनों के प्रयोग का अलग-अलग अर्थ होता है, जैसे गाल (मुँह का बाहरी भाग) तथा गाळ (गाली)।

राजस्थानी भाषा में तालव्य ‘श’ एवं मूर्धन्य ‘ष’ की ध्वनियाँ तो हैं परन्तु राजस्थानी लिपि में इनके लिए दंत्य ‘स’ का ही प्रयोग होता है। इसी प्रकार राजस्थानी लिपि में ‘ज्ञ’ का स्वतंत्र संकेत नहीं है बल्कि इसके स्थान पर ‘ग्य’ ही लिखते हैं। राजस्थानी लिपि में संयुक्ताक्षरों की ध्वनि नहीं है जैसे- संयुक्ताक्षर क्ष, के स्थान पर ‘छ’, क’ या ‘ख’ लिखा जाता है जैसे लक्षण का ‘लखण’, लक्ष्मण का लिछमन व राक्षस का ‘राकस’ आदि। राजस्थानी लिपि में ‘ऋ’ की ध्वनि का अलग से कोई चिह्न नहीं है बल्कि इसकी जगह ‘रि’ ही लिखा जाता है जैसे ऋतु की जगह रितु । इसमें अभक्षर या संयुक्ताक्षर व रेफ का प्रचलन भी नहीं है रेफ का पूरा ‘र’ हो जाता है, जैसे- गर्म की जगह ‘गरम’, वक्त का बगत या वकत आदि लिखते हैं।

मुड़िया लिपि

राजस्थानी लिपि को व्यापारी एवं महाजन लोग अपने बहीखातों में विशुद्ध रूप में न लिखकर इसकी अशुद्ध लिपि प्रयुक्त करते हैं, जिसमें विभिन्न अक्षरों पर मात्राओं का प्रयोग एवं विराम चिह्नों का प्रयोग बहुत कम (नहीं के बराबर) होता है तथा शिरोरेखा भी बहुत कम प्रयुक्त होती है। राजस्थानी लिपि के इसी अशुद्ध रूप को ‘मुड़िया लिपि’, ‘महाजनी या बाणियावाटी लिपि’ कहते हैं। यह ‘शॉर्टहैण्ड’ का काम देती है। परन्तु मात्राओं एवं विराम चिह्नों के अभाव में कई बार इसमें अर्थ का अनर्थ हो जाता है। यह लिपि बाँयी से दाँयी ओर लिखी जाती है।

मुड़िया लिपि के अक्षरों को मुड़िया अक्षर कहते हैं। ये बिना मात्रा वाले शब्द मोड़कर लिखे जाते हैं। इसी कारण इनका नाम | मुड़िया अक्षर पड़ गया। इस लिपि में बिना कलम उठाये वाक्य पूर्ण किया जा सकता है। मुड़िया लिपि में अक्षरों के नीचे नुक्ता लगाने का प्रचलन नहीं है। इस लिपि का प्रयोग 16वीं शताब्दी से 1950 ई. तक राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र आदि क्षेत्रों में किया जाता | रहा है। वर्तमान में इसका प्रयोग धीरे-धीरे कम हो गया है।

मुड़िया अक्षरों के आविष्कार का श्रेय मुगल सम्राट अकबर के राजस्व विभाग के मुखिया राजा टोडरमल को दिया जाता है। इस मान्यता के पक्ष में टोडरमल द्वारा रचित निम्न दोहा भी प्रचलित है

देवनागरी अति कठिन, स्वर व्यजन व्यवहार,

तातें जग के हित सुगम, मुड़िया कियो प्रचार।

देवनागरी लिपि

देवनागरी का उद्भव व विकास:

देवनागरी प्रमुख लिपि है वर्तमान में उत्तरी भारत की अधिकांश भाषाओं की लिपि देवनागरी लिपि ही है। हिंदी एवं संस्कृत भाषा भी इसी लिपि में लिखी जाती है। देवनागरी लिपि का विकास सिद्धमातका की कुटिल लिपि से उद्भूत नागरी लिपि से हुआ है। बोधगया के महानाम शिलालेख में एवं लेखमंडल की प्रशस्ति (588 ई.) में देवनागरी के कुछ लक्षण स्पष्ट होने दृष्टिगोचर होते हैं। सातवीं शताब्दी के आते-आते देवनागरी लिपि के ये लक्षण और भी स्पष्ट हो गये थे तथा 8वीं सदी तक देवनागरी लिपि पूर्णतः विकसित हो चुकी थी। 10वीं सदी तक यह लिपि अपनी परिपक्वता को प्राप्त कर चुकी थी।

  • भारत की सभी लिपियाँ ब्राह्मी लिपि से विकसित हैं। ब्राह्मी लिपि का प्रयोग सर्वप्रथम वैदिक आर्यों ने प्रारंभ किया था।
  • गुप्तकाल के आरंभ में ब्राह्मी दो भागों में विभाजित हो गई थी। 1. उत्तरी ब्राह्मी2 . दक्षिणी ब्राह्मी।
  • उत्तरी ब्राह्मी से गुप्त लिपि का विकास हुआ। गुप्त लिपि से आगे जाकर सिद्धमातृका लिपि का विकास हुआ।
  • सिद्धमातृका लिपि से कुटिल लिपि (कुटिलाक्षरा लिपि) विकसित हुई जो निम्न दो भागों में भिन्न-भिन्न रूप में विकसित हुई- 1. नागरी, 2. शारदा 
  • नागरी के दो रूप विकसित हुए- 1. पूर्वी देवनागरी, 2. पश्चिमी देवनागरी 
  • नागरी के पूर्वी रुप से कौमी, मैथिली, नेवारी, उड़िया, बंगला, असमिया आदि लिपियों का विकास हुआ। 
  • इसके पश्चिमी रुप से गुजराती, राजस्थानी, महाराष्ट्री और वर्तमान देवनागरी का विकास हुआ।
  • दक्षिणी ब्राह्मी से तमिल लिपि, ग्रंथ लिपि और मलयालम लिपि का विकास हुआ। 

देवनागरी नामकरण से संबंधित तथ्यः

  • इस लिपि का सर्वप्रथम प्रयोग गुजरात के नागर ब्राह्मणों ने किया इसलिए इसका नाम नागरी पडा।
  • संस्कृत को देवभाषा कहा जाता था। अत: संस्कृत को जिस लिपि में लिखा जाने लगा वह देवनागरी कहलाई।
  • इस लिपि का नगरों में अधिक प्रचार था इसलिए भी इसका नाम नागरी पड़ा।
  • बौद्ध ग्रंथों में नाग लिपि का उल्लेख मिलता है, इससे भी विकसित लिपि को नागरी लिपि नाम मिला।

देवनागरी लिपि के गुण/विशेषताएँ:

  • देवनागरी लिपि भारत की प्रधान लिपि है। संविधान में इसे राजलिपि घोषित किया गया है।
  • यह लिपि बाँयी से दाँयी ओर लिखी जाती है। 
  • यह एक वर्णात्मक लिपि है। प्रत्येक वर्ण में ‘अ’ या अन्य स्वर जुड़ा होने के कारण इसे अर्द्ध अक्षरात्मक लिपि भी कहते हैं। 
  • लेखन और उच्चारण में एकरूपता देखी जा सकती है। वर्गों के उच्चारण एवं प्रयोग में समानता है। 
  • प्रत्येक ध्वनि के लिए एक अलग चिह्न और एक चिह्न की एक ही ध्वनि होना इस वैज्ञानिक लिपि की अन्यतम विशेषता है। 
  • इस लिपि में एक वर्ण में दूसरे वर्ण का भ्रम नहीं होता। व्यंजन-संयोग अंकित करने की पद्धति पूर्ण है। 
  • इस लिपि का प्रत्येक वर्ण उच्चरित होता है। कोई भी मूक (Silent) वर्ण नहीं है। 
  • इसका व्यापक प्रयोग होता है। यह संस्कृत, मराठी, नेपाली और हिन्दी आदि भाषाओं की लिपि है। 
  • यह एक मात्र लिपि है, जिसे कुछ विदेशी शब्दों को लिखने के लिए वर्गों के नीचे नुक्ता लगाकर प्रयोग किया जाता है। देवनागरी लिपि में कुछ अक्षरों के नीचे नुक्ते या बिंदु (.) का प्रयोग इस लिपि पर फारसी लिपि का प्रभाव है, जैसे क़, ख़, ग़, ज़, फ़ आदि। 
  • इस लिपि की वर्णमाला का विभाजन या वर्गीकरण पूर्ण वैज्ञानिक है। यह संसार की सर्वश्रेष्ठ एवं वैज्ञानिक लिपि है। 
  • इसमें जो लिपि चिह्न जिस ध्वनि का द्योतक है, उसका नाम भी वही है। 
  • इस लिपि में ह्रस्व एवं दीर्घ स्वर के लिए स्वतंत्र चिह्न हैं जो अन्य लिपियों में नहीं है। 
  • इस लिपि में छपाई एवं लिखाई के लिए एक ही रूप है। यह सबसे सुगम लिपि है। 
  • प्रत्येक ध्वनि के लिए एक अलग लिपि चिह्न है।

देवनागरी लिपि के दोष :

देवनागरी लिपि के प्रमुख दोष निम्नलिखित हैं :-

  • द्विरूप वर्ण ( , अ, ज्ञ, क्ष, त, त्र, क-झ, ण-ण, श-श्र)।
  • समरूप वर्ण (ख में र व का, घ में ध का, म में भ का भ्रम होना)।
  • अनुस्वार एवं अनुनासिकता के प्रयोग में एकरूपता का अभाव।
  • शीघ्र लेखन संभव नहीं, क्योंकि लेखन में हाथ बार-बार उठाना पड़ता है।
  • “इ की मात्रा रि)का लेखन वर्ण के पहले पर उच्चारण वर्ण के बाद।
  • वर्गों के संयुक्तीकरण में र के प्रयोग को लेकर भ्रम की स्थिति।
  • कुल मिलाकर 403 टाइप होने के कारण टंकण, मुंद्रण में कठिनाई। 
  • शिरोरेखा का प्रयोग अनावश्यक अलंकरण के लिए। 

देवनागरी लिपि में सुधार :

  • देवनागरी लिपि में एकरूपता लाने के उद्देश्य से स्वतंत्रता पूर्व से लेकर स्वतंत्रता के बाद तक अनेक सुधार किए गए हैं।
  • सर्वप्रथम 1904 ई. में लोकमान्य बालगंगाधर तिलक ने अपने पत्र ‘केसरी’ के लिए 190 टाइपों का एक टाइप बनाया, जो ‘तिलक फोंट’ के नाम से जाना जाता है।
  • 1935 में हिन्दी साहित्य सम्मेलन, इंदौर में काका कालेलकर के नेतृत्व में नागरी लिपि सुधार समिति बनाई गई। 
  • 1945 में नागरी प्रचारिणी सभा काशी ने लिपि सुधार का प्रयास किया। 
  • 1947 में उत्तर प्रदेश सरकार ने नागरी लिपि में उधार हेतु सुझाव देने के लिए नरेन्द्र देव की अध्यक्षता में एक समिति बनाई। 
  • 1953 में तत्कालीन उपराष्ट्रपति राधाकृष्णन की अध्यक्षता में लिपि सुधार समिति गठित की गई।

वर्तमान में देवनागरी लिपि का प्रयोग लगभग 120 भाषाओं की लिखित अभिव्यक्ति के लिए प्रयुक्त हो रहा है, जिनमें हिन्दी, संस्कृत, मराठी, नेपाली, पाली, कोंकणी, बोडो, सिंधी एवं मैथिली आदि प्रमुख हैं । बंगला, ओडिसी, गुजराती, तमिल, मलयालम, पंजाबी, कन्नड़, तेलुगु आदि भाषाओं की अपनी-अपनी पृथक लिपियाँ हैं।

आशा करता हु की आपको ये पोस्ट (राजस्थानी लिपि एवं भाषा : (Rajasthani script and language.)) पसंद आई होगी। पसंद आई तो इस पोस्ट को शेयर जरूर करे और अपना ज्ञान बढ़ाने के लिए rajgktopic पर विजिट करते करे। धन्यवाद 

यह भी पढ़े :-


Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *