राजस्थान जिला दर्शन (भीलवाडा) : भीलवाडा जिला दर्शन : Rajasthan jila darshan

By | July 3, 2021
BHILWARA JILA DARSHAN

भीलवाडा जिला दर्शन : भीलवाडा जिले की सम्पूर्ण जानकारी 

भीलवाड़ा में सिक्के ढालने की टकसाल थी जिसमें ‘भिलाडी’ नामक सिक्के ढाले जाते थे इसलिए इस क्षेत्र का नाम भीलवाडा पड़ा।राजस्थान का यह जिला ‘आयताकार’ आकृति का है। पाषाणकालीन सभ्यताओं के पुरास्थलों यथा बागोर, ओझियाना, हुरड़ा आदि की थाती को समेटे हुए भीलवाड़ा जिला राज्य की अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। ये सभी स्थल भीलवाड़ा क्षेत्र की प्राचीनता का अहसास कराते हैं। भीलवाड़ा जिले के माण्डलगढ़ में मेवाड़ महाराणा संग्रामसिंह (राणा सांगा) की समाधि है। मराठों के विरुद्ध राजपूताने के शासकों को संगठित करने हेतु हुरड़ा स्थान पर उनका सम्मेलन हुआ था। हुरड़ा भीलवाड़ा जिले में ही है। ब्रिटिश शासन के दौरान देश के स्वतंत्रता आंदोलन में भी भीलवाड़ा के स्वतंत्रता सैनानियों का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा। इस जिले के शाहपुरा के श्री केसरी सिंह बारहठ एवं उनके समस्त परिवारजनों ने देश को स्वतंत्र कराने हेतु अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया। राज्य के पहले सफल व संगठित किसान आंदोलन ‘बिजौलिया किसान आंदोलन’ की शुरुआत भी इसी जिले के बिजौलिया ग्राम से हुई थी।

  • भीलवाड़ा का क्षेत्रफल : 10455 वर्ग कि.मी।
  • इस जिले के पश्चिम में राजसमंद, दक्षिण में चित्तौड़गढ़, पूर्व में बूंदी, उत्तर में अजमेर व उत्तर-पूर्व में टोंक जिला स्थित हैं।
  • भीलवाड़ा की मानचित्र स्थिति – 25°1′ से 25°58′ उत्तरी अक्षांश से 74°1′ से 75°28′ पूर्वी देशान्तार।
  • बनास, बेड़च, कोठारी, मानसी, खारी व मेनाल यहाँ की मुख्य नदियाँ हैं। 
  • भीलवाड़ा जिले को राज्य की ‘टैक्सटाइल सिटी’, ‘राजस्थान का मैनचेस्टर’ व ‘अभ्रक नगरी’ भी कहा जाता है।
  • मेजा बाँध यहाँ का मुख्य बाँध है। 
  • मेनाल जलप्रपात भीलवाड़ा में ही स्थित है।
  • पड़ (फड़) चित्रण के लिए शाहपुरा (भीलवाड़ा) विश्वस्तर पर विख्यात है।
  • ऊपरमाल-भैंसरोगढ़ (चित्तौड़गढ़) से लेकर बिजौलिया (भीलवाड़ा) तक का पठारी भाग ऊपरमाल कहलाता है।
  • भीलवाड़ा का सूती वस्त्र उद्योग प्रमुख है। यहाँ पर मेवाड़ टैक्सटाइल्स मिल लिमिटेड की स्थापना 1938 में हुई।

भीलवाड़ा के प्रमुख मेले व त्यौहार

  • फूलडोल का मेला — रामनिवास धाम (रामद्वारा)
  • सौरत (त्रिवेणी) का मेला  —  सौरत (त्रिवेणी)
  • धनोप माता का मेला — धनोप गांव (खारी व मान्सी नदी के बीच स्थित)
  • सवाई भोज का मेला — सवाई भोज, आसीन्द
  • तिलस्वाँ महादेव मेला — तिलस्वाँ (मांडलगढ़ ) 

भीलवाड़ा के चर्चित व्यक्ति

  • विजय सिंह पथिक — बिजौलिया किसान आन्दोलन के जनक। 1917 में उपरमाल पंच बोर्ड की स्थापना। (इनका जन्म गुठावली गाँव-बुलन्द शहर, उत्तरप्रदेश में हुआ)  
  • केसरी सिंह बारहठ — 21 नवम्बर 1872 को शाहपुरा में जन्म। “चेतावनी रा चुंगठिया” के लेखक। 
  • माणिक्य लाल वर्मा — जन्म-बिजौलिया। इनका पंछीड़ा’ नामक लोकगीत बहुत प्रसिद्ध हुआ। इन्होंने मेवाड़ का वर्तमान शासन’ नामक पुस्तक लिखी। संयुक्त राजस्थान (एकीकरण का तृतीय चरण 18 अप्रैल, 1948) के मुख्यमंत्री। 
  • अभिजीत गुप्ता — सतरंज खिलाड़ी, राज्य के प्रथम एवं देश के 17 वें ग्रैण्ड मास्टर बने है।  
  • जानकीलाल भांड — अंगुचा (भीलवाड़ा) के निवासी प्रसिद्ध बहरूपिया कलाकार, जिन्हें ‘मंकी मैन’ के नाम से जाना जाता है। 

भीलवाड़ा के प्रमुख मंदिर

  • शाहपुरा का रामद्वारा — शाहपुरा (भीलवाड़ा) में रामस्नेही सम्प्रदायका पधान मठारामस्नेही सम्प्रदाय के संस्थापक स्वामी श्री रामद्वारा रामचरण जी महाराज ने सन 1751 में इस सम्पदाय की मख्य गही शाहपुरा में स्थापित की। स्वामी महाराज के देहावसान के बाद जिस स्थान पर उनकी अंत्येष्टि की गई उसी स्थान पर यह विशाल रामद्वारा निर्मित किया गया। इस समाधि स्थल के ऊपर एक बारहदरी है। इस बारहदरी में कोई मूर्ति, चित्र या पादुका कुछ भी नहीं है। केवल इसके बीचों-बीच समाधि स्तंभ की चौकी पर चौंतीस बार र-र-र और राम-राम-राम लिखा हआ है। रामटारा परिसर में ही दक्षिण की तरफ पंक्तिवार छतरियों निर्मित हैं। उत्तर की तरफ शाहपुरा के दिवंगत राजाओं की छतरियाँ भी हैं। प्रतिवर्ष चैत्र कृष्णा प्रतिपदा से पंचमी तक (मार्च-अप्रैल) शाहपरा में फलडोल का उत्सव बडी धमधाम के साथ मनाया जाता है।
  • सवाई भोज मंदिर — यह आसींद (भीलवाडा) में खारी नदी के तट पर स्थित लगभग 11 सौ वर्ष पुराना देवनारायण मंदिर है। (गाठा दड़ावता) यह मंदिर गर्जर जाति के लोगों के लिए विशेष श्रद्धा का केन्द्र है। यह मंदिर चौबीस बगड़ावत भाइयों में से एक सवाई भोज को समर्पित है। राजस्थान में देवनारायणजी के चार प्रमुख मंदिर है-गोठाँ दड़ावताँ (आसीन्द), देवधाम जोधपुरिया (निवाई, टोंक), देवमाली (अजमेर) एवं देव डूंगरी (चित्तौड़गढ़)।
  • बाईसा महारानी का मंदिर — यह प्रसिद्ध देवालय गंगापुर (भीलवाड़ा) में स्थित है। यह मंदिर ग्वालियर के महाराजा महादजी सिंधिया  की पत्नी महारानी गंगाबाई की स्मृति में निर्मित किया गया। महारानी गंगाबाई उदयपुर के महाराणा व  उनके उमराव देवगढ़ राव के मध्य सुलह करवाने उदयपुर गई थी। वापस लौटते समय यहाँ उनका देहान्त हो गया था। इस मंदिर में गंगाबाई की मूर्ति स्थापित है। यहाँ उनकी छतरी भी है।
  • हरणी महादेव का मंदिर — भीलवाड़ा से 6 किमी दूर स्थित । यहाँ एक झुकी हुई चट्टान के नीचे शिवजी का मंदिर बना हुआ है। प्रतिवर्ष शिवरात्रि पर यहाँ विशाल मेला लगता है।
  • तिलस्वाँ मंदिर — माँडलगढ़ के निकट तिलस्वाँ महादेव मंदिर है।
  • धनोप माता का मंदिर — भीलवाड़ा के धनोप गाँव में स्थित मंदिर । धनोप माता राजा धुंध की कुलदेवी थी। यहाँ प्रतिवर्ष चैत्र सुदी मंदिर एकम से चैत्र सुदी दशमी तक मेला आयोजित होता है।
  • मंदाकिनी मंदिर — मंदाकिनी मंदिर भीलवाड़ा जिले में बिजोलिया में स्थित मंदाकिनी मंदिर’ विलक्षण है। यहाँ तीन मंदिर- महाकालेश्वर, हजारेश्वर व उण्डेश्वर मंदिर व एक जलकुण्ड-मंदाकिनी जलकुण्ड है।
  • गाडोली महादेव — भीलवाड़ा जिले के जहाजपुर में गाडोली महादेव अकेले ऐसे महादेव है पूर्ण रूप से परिधानों में सजाए जाते हैं। देश का शायद यह पहला शिव मंदिर है जहाँ फाल्गुन के अलावा भाद्रपद की चतुर्दशी को भीमहाशिवरात्रि मनाई जाती है।
  • देवतलाई के देवनारायण — भीलवाड़ा जिले की कोटड़ी तहसील के देवतलाई गाँव का देवनारायण मंदिर सर्वधर्म समभाव का प्रतीक है। एक ही परिसर में ईसाई, बौद्ध, मुस्लिम, जैन सहित अन्य धर्मों के करीब 70 मंदिर है।
  • बागोर गुरुद्वारा — बागोर गुरुद्वारा भीलवाड़ा के बागोर ग्राम में नवनिर्मित गुरुद्वारा श्रीकलगीधर बागोर साहिब जन-जन की आस्था का केन्द्र है। सिक्खों के 10वें गुरु गोविंदसिंह मार्च, 1707 में अपनी दक्षिण यात्रा के समय बागोर के प्राचीन गढ़ पर 17 दिन तक रूके थे। उसी की याद में बागोर में गुरुद्वारे का निर्माण करवाया गया।

भीलवाड़ा के पर्यटन व दर्शनीय स्थल

  • माण्डल — इस कस्बे में प्रसिद्ध प्राचीन स्तम्भ मिंदारा, जगन्नाथ कछवाहा की बत्तीस खंभों की छतरी एवं कोठारी नदी पर बना मेजा बाँध प्रमुख पर्यटन स्थल हैं। यहाँ होली के तेरह दिन पश्चात् रंग तेरस पर नाहर नृत्य का आयोजन होता है।
  • बिजोलिया — स्वतंत्रता पूर्व के देश के पहले संगठित किसान आन्दोलन के लिए प्रसिद्ध बिजोलिया कस्बे में प्राचीन मंदाकिनी मंदिर एवं बावड़ियाँ हैं।
  • शाहपुरा — रामस्नेही सम्प्रदाय की प्रमुख पीठ ‘राम द्वारा’ यहीं स्थित है। यहीं प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी केसरीसिंह बारहठ एवं प्रतापसिंह बारहठ की हवेली एक स्मारक के रूप में संरक्षित है। परकोटे के द्वार पर केसरी सिंह बारहठ उनके अनुज जोरावर सिंह एवं उनके पुत्र प्रतापसिंह की मूर्तियाँ लगी हैं। यह कस्वा पड़ चित्रण के लिए भी प्रसिद्ध है। राज्य की प्रथम लोकतांत्रिक सरकार का गठन शाहपुरा रियासत में ही किया गया था। 23 दिसम्बर को प्रतिवर्ष यहाँ शहीद मेला लगता है। यहाँ होली के दूसरे दिन फूलडोल मेला आयोजित होता है।
  • मेनाल — चित्तौड़गढ़ बूंदी मार्ग पर मांडलगढ़ कस्बे के निकट स्थित यह स्थान नीलकण्ठेश्वर महादेव (महानाल देव) के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ एक बारहमासी झरना भी बहता है तथा मेनाल नदी पर मेनाल जल प्रपात स्थित है। यहाँ से कुछ दूर बीगोद के निकट तीन नदियों बनास, बेड़च व मेनाल का त्रिवेणी संगम है।
  • बारहदेवरा , जहाजपुर —  जहाजपुर कस्बे में स्थित इस तीर्थस्थल में 12 लघुदेवालय बने हुए हैं जो 12वीं शताब्दी की स्थापत्य कला जहाजपुर के परिचायक हैं।
  • लव गार्डन — भीलवाड़ा के इस पार्क का निर्माण वर्ष 1987 में प्रारंभ हुआ और तीन वर्ष बाद 15 अगस्त, 1990 को यह आम जनता के लिए खोल दिया गया।
  • चमना बावड़ी — शाहपुर (भीलवाड़ा) में स्थित भव्य और विशाल तिमंजिली बावड़ी जिसका निर्माण वि.सं. 1800 में महाराजा उम्मेदसिंह प्रथम ने चमना नामक गणिका की इच्छा पर करवाया था।
  • बागोर — कोठारी नदी के तट पर स्थित बागोर एक मध्यपाषाण युगीन पुरातात्विक स्थल है। बस्ती से एक किमी पूर्व में ‘महासतियों का टीला’ नाम का स्थल पाषाणकालीन अवशेषों के कारण विश्वविख्यात है। बागोर अभ्रक बहुल क्षेत्र के मध्य स्थित है और इसके आसपास अभ्रक की महत्त्वपूर्ण खदानें है।
  • सीतारामजी की बावड़ी — भीलवाड़ा में स्थित इस बावड़ी में एक गुफा बनी हुई है जिसमें बैठकर रामस्नेही सम्प्रदाय के प्रवर्तक बावड़ी स्वामी रामचरणजी ने 36 हजार पदों की रचना की तथा रामस्नेही सम्प्रदाय की स्थापना की।

महत्त्वपूर्ण तथ्य

  • भीलवाड़ा नगर में शाहपुरा रियासत की टकसाल थी जिसके सिक्के भिलाड़ी कहलाते थे।
  • बिजौलिया का पुराना नाम विन्ध्यावली है।
  • भोडल की छपाई : भीलवाड़ा के छीपे अभ्रक से भी छपाई का कार्य करते हैं जो भोडल की छपाई कहलाती है। इसके बूटे दूर से ही चमकते हैं।
  • आंगी गैर नृत्य : भीलवाड़ा के गैर नर्तक पाँवों में लम्बा जामा (आंगी) पहनते हैं इस कारण यहाँ का गैर नृत्य आंगी गैर कहलाता है।
  • भीलवाड़ा का ‘माच का ख्याल’ प्रसिद्ध है। भीलवाड़ा के बगसूलाल खमेसरा को ‘माच ख्याल का जनक’ माना जाता है।
  • कम्प्यूटर एडेड डिजाइन सेंटर भीलवाड़ा में है।
  • पहली महिला तकनीकी अधिकारी भीलवाड़ा की फ्लाइट लेफ्टीनेन्ट मोनिका बनी।
  • नाहर नृत्य माण्डलगढ़ का प्रसिद्ध जबकि स्वांग शाहपुरा का प्रसिद्ध है।
  • भीलवाड़ा जिले के मांडल में ‘नारों का स्वांग’ बहुत प्रसिद्ध है।
  • भीलवाड़ा के जानकीलाल बहुरूपिया कला के अंतरराष्ट्रीय कलाकार रहे है।
  • कषि से जुड़ी जानकारी देने वाला राज्य का पहला रेडियो स्टेशन भीलवाड़ा है।
  • ईंट उद्योग में भीलवाड़ा सर्वाधिक विकसित जिला है। यहाँ पर अभ्रक की ईंटें बनाई जाती है तथा राजस्थान में अभ्रक मण्डी भी यहीं है।
  • ‘माच ख्याल के पितामह भीलवाड़ा निवासी बगसु लाल खमेसरा को कहा जाता है।

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