राजस्थान के लोक देवता : Rajasthan ke lok devta

By | May 13, 2021
Rajasthan ke lok devta

राजस्थान के लोक देवता

1. पाबूजी 

  • राठौड़ राजवंश के पाबूजी राठौड़ का जन्म फलौदी (जोधपुर) के निकट कोलुमण्ड में हुआ। पाबूजी के पिता का नाम धधाँल जी राठौड़ एवम माँ का नाम कमलादेथा।ये राठौड़ो के मूल पुरुष राव सिंह के वंशज थे। इनका विवाह अमरकोट (या उमरकोट) के राजा सूरजमल सोडा की पुत्री सुप्यारदे से हो रहा था की ये फेरो के बीच से ही उठकर अपने बहनोई जीन्दराव खींची से देवल चारणी (जिसकी केसर कालमी घोड़ी ये मांग कर लाए थे) की गाये छुड़ाने चले गये और ढेंचू गांव में वि.स 1333 में युद्ध में वीर गति को प्राप्त हुए। अतः इन्हे गौ-रक्षक देवता के रूप में पूजा जाता है।
  • प्लेग रक्षक एवं ऊँंटो के देवता के रूप में पाबूजी की विशेष मान्यता है कहा जाता है कि मारवाड़ में सर्वप्रथम ऊंट (सांडे) लाने का श्रेय पाबूजी को जाता है. अतः ऊँटो कि पालक रायका (रेबारी) जाति इन्हें अपना आराध्य देव मानती है यह थोड़ी एवं भील जाति के अति लोकप्रिय हैं तथा मेंहर जाति के मुस्लिम इन्हें पीर मानकर पूजा करते हैं यह लक्ष्मण के अवतार भी माने जाते है। 
  • पाबूजी केसर कलमी घोड़ी एवं बायीं और झुकी पाग के लिए प्रसिद्ध है. इनका बोधचिन्ह भाला है। 
  • कोलूमंड में इनका सबसे प्रमुख मंदिर है जहां प्रतिवर्ष चैत्र अमावस्या को मेला भरता है। 
  • पाबूजी से संबंधित गाथा गीत पाबूजी के फावड़े माठवाध के साथ नायक एवं रेबारी जाती द्वारा गाए जाते हैं। 
  • पाबूजी की फड़ नायक जाति के भोपों द्वारा रावतहत्था वाध के साथ बाँची जाती है। 
  • चांदा-डेमा और हरमल बाबूजी के रक्षक सहयोगी के रूप में जाने जाते है। 
  • पाबूजी गौ-रक्षक होने के साथ-साथ अछूतोंद्वारक भी थे। 
  • पाबूजी के पांच प्रमुख साथी सरदार चांदो जी, सांवत जी , डेमाजी, हरमलजी राईका एवं सलजी सोलंकी थे, जिन पर इन्हे अटूट विश्वास था। 
  • थोरी जाति के लोग सारंगी के साथ पाबूजी की यशगाथा गाते हैं, जिसे यहां की स्थानीय बोली में पाबू धणी की बांचना कहते हैं। 
  • आशिया मोड जी द्वारा लिखित पाबू प्रकाश पाबू जी के जीवन पर एक महत्वपूर्ण रचना है. इनके अलावा पाबूजी पर पाबूजी रा छंद ,पाबूजी के दोहे, पाबूजी रा कवित,  पाबूजी रा रूपक, पाबूजी री कथा, पाबूजी के गीत, पाबूजी री बात, पाबूजी के पावड़े , पाबूजी की लोकगाथा आदि प्रसिद्ध रचनाएं भी है। 
  • पाबूजी ने बघेला शासक के भगोड़े म्लेच्छ जाति के साथ थोरी भाइयों को शरण देकर उनकी रक्षा की थी।

2. गोगाजी 

  • चौहान वंशीय गोगाजी का जन्म 11 वी सदी में चूरू जिले के ददरेवा नामक स्थान पर जेवरसिंह – बाछल देवी के घर हुआ. ददरेवा में इनके स्थान को शीर्षमेड़ी कहते हैं जहां हर वर्ष गोगाजी का मेला भरता है। 
  • ऐसा कहा जाता है कि गोगाजी का जन्म गुरु गोरखनाथ (नाथपंथी योगी) के आशीर्वाद से हुआ था। 
  • गोगाजी का विवाह केलमदे जो (कोलूमंड की राजकुमारी थी) से होना था परंतु विवाह से पूर्व ही उनकी मंगेतर को सांप ने डस लिया। गोगाजी क्रोधित हो मंत्र पढ़ने लगे जिससे सर्प मरने लगे. तब नागदेवता ने इन्हें सर्पों का देवता होने का वरदान दिया
  • गांव-गांव में खेजड़ी वृक्ष के नीचे गोगाजी के चबूतरे या थान (गोगाजी की मेडी) जिनमे पत्थर पर  होती है बने हुए हैं
  • गोगा जी ने गौ रक्षक एवं मुस्लिम आक्रमण ताऊ महमूद गजनवी से देश की रक्षा अपने प्राण निछावर कर दिया इसलिए इन्हें लोक देवता के रूप में पूजा जाने लगा इन्हें जहर पीर गोगा पीर या गोगा के नाम से भी पूजा जाता है मुखर्जी को गोगा बापा कह कर भी पुकारते हैं
  • इन्हें सांपों का देवता माना जाता है राजस्थान का किसान मोर्चा के बाद हल जोतने से पहले गोगाजी के नाम की राखी होगा राखड़ी फल और हाली दोनों के बनता है इन्हें सर्दी से बचाव हेतु पूजा जाता है सरकार के व्यक्ति को गोगाजी के नाम की तांती बांधी जाती है
  • गोगा जी के जन्म स्थल ददरेवा को सीट मिली तथा समाधि स्थल गोगामेडी नोहर हनुमानगढ़ को दूर मेडी वे कहते हैं गोगामेडी में प्रतिवर्ष भाद्रपद कृष्ण नवमी गोगा नवमी को विशाल मेला पड़ता है
  • सांचौर जालौर किलो की ढाणी में गोगा जी की ओल्ड नामक स्थान पर गोगाजी का मंदिर है
  • गोगा जी के मंदिर गोगामेड़ी के सभा मंदिर के दरवाजे की ऊंचाई पर बिस्मिल्लाह अंकित पत्र लगा हुआ है गोगा जी के समाधि स्थल के बाहर नर्सिंग कुंड स्थित है। 
  • गोगामेडी के चारों ओर फैला हुआ जंगल वाणी या कोई और चलाता है
  • गोगा जी की सवारी नीली घोड़ी थी गोगा जी की पूजा वाला लिए युद्ध वाला लिए घुड़सवार गोगाजी और साथ में उनके प्रशिक्षक के रूप में होती है इनको खेल लापसी और चूरमे का भोग लगाया जाता है
  • गोगाजी के तीर्थ यात्री अपने साथ वहां स्थित गोरखाना तालाब की पवित्र मिट्टी ले जाते हैं ऐसी मान्यता है कि स्वर्ग दक्ष पर एक मिट्टी का लेप लगाने से रोगी ठीक हो जाता है
  • गोगा जी को हिंदू व मुसलमान दोनों बोलते हैं अतः यह दोनों संप्रदायों के निकट स्थित स्थापित करने के लिए स्मरणीय भी है

3. रामदेवजी

  • लोकदेवता रामदेवजी का जन्म तँवर वंशीय ठाकुर अजमाल जी के हुआ। इनकी माता का नाम मैणादे था। ये अर्जुन के वंशज माने जाते हैं।
  • रामदेव जी का जन्म बाड़मेर की शिव तहसील के उण्डु कासमेर गाँव में हुआ तथा इन्होंने रुणीचाके राम सरोवर के किनारे जीवित समाधि ली थी।
  • रामदेवजी को रुणेचा रा धनी ,पिरो के पीर और सम्प्रदायक सौहार्द के लोक देवता के रूप में पूजा जाता है।
  • रामदेवजी ने पोकरण कस्बे को पुनः बसाया तथा रामदेवरा (रुणेचा) में रामसरोवर का निर्माण करवायाथा
  • रामदेव जी के गुरु का नाम बालीनाथ जी था।
  • इनका विवाह अमरकोट (वर्तमान में पाकिस्तान में) के सोढ़ा राजपूत दलै सिंह की पुत्री निहालदे (नेतलदे) के साथ हुआ था।
  • रामदेवजी का सहयोगी था उसका नाम हरजी भाटी था।
  • रामदेवजी ने समाज में व्याप्त छुआ-छूत, ऊँच-नीच आदि बुराइयों को दूर कर सामाजिक समरसता स्थापित की थी। अत: सभी जातियों (विशेषत: निम्न जातियों के)एवं सभी समुदायों के लोग इनको पूजते हैं । ये अपनी वीरता और समाज सुधार के कारण पूज्य हुए।
  • रामदेवजी के बड़े भाई वीरमदेव को ‘बलराम का अवतार’ माना जाता है। रामदेवजी को ‘विष्णु काअवतार’ भी मानते हैं।
  • हिन्दू इन्हें कृष्ण का अवतार मानकर तथा मुसलमान ‘रामसा पीर’ के रूप में इनकी पूजा करते हैं।
  • रामदेवजी जी कामङिया पंथ की शुरुआत की थी।
  • ऐसी मान्यता है कि रामदेवजी ने बाल्यावस्था में ही सातलमेर ( पोकरण) क्षेत्र में तांत्रिक भैरव राक्षस का वध कर उसके आतंक को समाप्त किया एवं जनता को कष्ट से मुक्ति दिलाई।
  • रामदेवरा (रुणीचा) में रामदेवजी का विशाल मंदिर है, जहाँ हर वर्ष भाद्रपद शुक्ला द्वितीया से एकादशी तक विशाल मेला भरता है, जिसकी मुख्य विशेषता साम्प्रदायिक सद्भाव है, क्योंकि यहाँ हिन्दू-मुस्लिम एवं अन्य धर्मों के लोग बड़ी मात्रा में पूरी श्रद्धा के साथ आते हैं।
  • भाद्रपद द्वितीया को जन्मोत्सव एवं भाद्रपद दशमी को समाधि उत्सव होता है। इस मेले का रामदेवजी की भक्ति में कामड़ जाति की स्त्रियों द्वारा तेरहताली नृत्य किया जाता है।
  • रामदेवजी के प्रतीक चिन्ह के रूप में खुले चबूतरे पर ताख (आला) बनाकर उसमें संगमरमर या पीले पत्थर के इनके पगल्ये या पगलिए (चरण चिह्न) बनाकर गाँव-गाँव में पूजे जाते हैं। इनके मेघवाल भक्त जनों को ‘रिखिया’ कहते हैं। रामदेवजी के भक्त इन्हें श्रद्धापूर्वक कपड़े का बना घोड़ा चढ़ाते हैं।
  • भाद्रपद शुक्ला द्वितीया ‘बाबे री बीज’ (दूज) के नाम से पुकारी जाती है।
  • रामदेवजी ही एक मात्र ऐसे देवता हैं, जो एक कवि भी थे। इनकी रचित ‘चौबीस बाणियाँ प्रसिद्ध हैं।
  • रामदेवजी के जागरण को जम्मा और पांच रंगो की ध्वजा को नेजा और रामदेवजी के चमत्कार को पर्चा कहते है।
  • डालीबाई रामदेवजी की अनन्य भक्त थी। रामदेवजी ने इसे अपनी धर्म बहन बनाया था। डालीबाई ने रामदेव जी से एक दिन पूर्व उनके पास ही जीवित समाधि ले ली थी। वहीं डाली बाई का मंदिरबना हुआ है ।
  • मक्का से आये पाँच पीरों को रामदेवजी ने पंच पीपली’ स्थान पर पर्चा दिया था। इन पंच पीरों ने रामदेवजी की शक्तियों एवं चमत्कारों से अभिभूत हो उनसे कहा था कि, ‘म्हें तो केवल पीर हाँ और थे पीरों का पीर’।
  • रामदेवजी के घोड़े का नाम लीला/ लीली था।
  • रामदेवजी की पड़ मुख्यत: जैसलमेर व बीकानेर में बाँची जाती है।
  • रुणेचा (रामदेवरा) में इनके पुजारी तँवर राजपूत होते हैं।
  • रामदेवजी की सोने या चाँदी के पत्तर पर मूर्ति खुदवाकर गले में पहनी जाती है। इस पतरे को ‘फूल’ कहते हैं।
  • रामदेवजी का ब्यावला (पूनमचंद द्वारा रचित), श्री रामदेवजी चरित (ठाकुर रुद्र सिंह तोमर), श्रीरामदेव प्रकाश (परोहित रामसिंह), रामसापीर अवतार लीला (ब्राह्मण गौरीदासात्मक) एवं श्रीरामदेवजी री वेलि (हरजी भाटी) आदि इन पर लिखे प्रमुख ग्रंथ है।

4. तेजाजी

  • लोक देवता तेजाजी खड़नाल (नागौर परगने में) के नागवंशीय जाट थे। इनका जन्म वि.सं. 1130 (1073 ई.) में माघ शुक्ला चतुर्दशी को हुआ था।
  • तेजाजी के पिता ताहड़जी एवं माता रामकुँवरी थी। तेजाजी का विवाह पेमलदे से हुआ।
  • तेजाजी को परम गौरक्षक एवं गायों का मुक्तिदाता माना जाता है। इन्हें काला और बाला’ देवता भी कहते हैं।
  • इन्होंने लाछा गुजरी की गायें मेरों से छुड़ाने हेतु वि.सं. 1160 (1103 ई.) भाद्रपद शुक्ला दशमी को सुरसरा (किशनगढ़, अजमेर ) अपने प्राणोत्सर्ग किए ।
  • इनके थान पर सर्प व कुत्ते काटे प्राणी का इलाज होता है।
  • प्रत्येक किसान तेजाजी के गीत (तेजाटेर) के साथ ही खेत में बुवाई प्रारम्भ करता है। ऐसा विश्वास है कि इस स्मरण से भावी फसल अच्छी होती है।
  • नागौर जिले के परबतसर कस्बे में तेजाजी का विशाल मेला भाद्रपद शुक्ला दशमी को भरता है। जहाँ बड़ा पशु मेला भी लगता है
  • सर्पदंश का इलाज करने वाले तेजाजी के भोपे को ‘घोड़ला’ कहते हैं।
  • तेजाजी की घोड़ी लीलण (सिणगारी) थी।
  • राजस्थान में प्रायः सभी गाँवों में तेजाजी के थान’ या ‘देवरे’ बने हुए हैं। देवरों पर तेजाजी की प्रतिमा हाथ में तलवार लिए घुड़सवार के रूप में सूर्य के साथ स्थापित की जाती है।
  • राज्य के लगभग सभी भागों में लोकदेवता तेजाजी को ‘सर्पो के देवता के रूप में पूजा जाता है। जाट जाति में इनकी अधिक मान्यता है।

5. देवनारायण जी

  • देव नारायणजी का जन्म आसीन्द (भीलवाड़ा में) बगड़ावत जी कुल के नागवंशीय गुर्जर परिवार में हुआ। वे सवाईभोज और सेढू के पुत्र थे।
  • इनका जन्म नाम उदयसिंह था।
  • देवनारायण का घोड़ा ‘लीलागर’ (नीला) था।
  • इनकी पत्नी धार नरेश जयसिंह देव की पुत्री पीपलदे थी।
  • देवजी का मूल ‘देवरा’ आसींद (भीलवाड़ा) के पास गोठांदड़ावत में है।
  • देवनारायण के देवरों में उनकी प्रतिमा के स्थान पर बड़ी ईंटों की पूजा की जाती है।
  • इनके प्रमुख अनुयायी गुर्जर जाति के लोग हैं जो देवनारायण जी को विष्णु का अवतार मानते हैं।
  • देवनारायण जी की पड़ गूजर भोपों द्वारा ‘जंतर वाद्य’ की संगत में बाँची जाती है। यह राज्य की सबसे बड़ी पड़ है।
  • देवनारायणजी का मेला भाद्रपद शुक्ला छठ व सप्तमी को लगता है।
  • देवनारायणजी औषधिशास्त्र के भी ज्ञाता थे। इन्होंने गोबर तथा नीम का औषधि के रूप में प्रयोग के महत्त्व को प्रचारित किया।
  • देवनारायणजी ऐसे प्रथम लोकदेवता हैं जिन पर केन्द्रीय सरकार के संचार मंत्रालय ने 2010 में 5 रु. का डाक टिकट जारी किया था।
  • देवजी के जन्मदिन भाद्रपद शुक्ला छठ’ को गुर्जर लोग दूध नहीं जमाते और न हीं बेचते हैं।
  • देवनारायण जी के संबंध में लिखे ग्रंथों में बात देवजी बगड़ावत री’, ‘देवजी री पड़’, ‘देवनारायण का मारवाड़ी ख्यात’ एवं ‘बगड़ावत’ काव्य प्रमुख हैं।
  • देवजी को चरमा व खीर का भोग लगाते हैं।

6. हड़बूजी

  • हड़बूजी भंडोल (नागौर) के राजा मेहाजी साँखला के पुत्र थे व मारवाड़ के राव जोधा के समकालीन थे।
  • लोकदेवता रामदेव जी, हड़बू जी के मौसेरे भाई थे, जिनकी प्रेरणा से हड़बू जी ने अस्त्र-शस्त्र त्यागकर योगी बालीनाथ से दीक्षा ली तथा बाबा रामदेव के समाज सुधार के लक्ष्य के लिए उन्होंने आजीवन पूर्ण निष्ठा से कार्य किया।
  • बेंगटी (फलौदी) में हड़बू जी का मुख्य पूजा स्थल है एवं इनके पुजारी साँखला राजपूत होते हैं।
  • बेंगटी में स्थापित मंदिर में हड़बूजी की गाडी की पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस गाड़ी में हड़बूजी पंगु गायों के लिए घास भर कर दूर-दूर से लाते थे।
  • हड़बू जी शकुनशास्त्र के भी अच्छे जानकर भविष्यदृष्टा थे। हड़बू जी मारवाड़ के पंच पीरों में से एक हैं। इनके आशीर्वाद व इनके द्वारा भेंट की गई कटार के माहात्म्य से जोधपुर के संस्थापक राव जोधा ने मण्डोर दुर्ग पर पुनः अधिकार कर उसे मेवाड़ के आधिपत्य से मुक्त करा लिया था।
  • ‘साँखला हरभू का हाल’ इनके जीवन पर लिखा प्रमुख ग्रंथ है।

7. मेहाजी मांगलिया

  • मेहाजी सभी मांगलियों के इष्ट देव के रूप में पूजे जाते हैं। मेहाजी का सारा जीवन धर्म की रक्षा और मांगलिया मर्यादाओं के पालन में बीता। जैसलमेर के राव राणंगदेव भाटी से युद्ध करते हुए ये वीरगति को प्राप्त हुए।
  • राजस्थान के जनजीवन में पंच पीरों के नाम से पूज्य पाँच लोक देवताओं में से एक मेहाजी मांगळ्यिा हैं।
  • मेहाजी मंडोर दुर्ग पर कब्जा कर अपनी राजधानी बनाने वाले राठौड़ शासक राव चूंडा (राव जोधा के पितामह) के समकालीन थे।
  • बापणी में इनका मंदिर है। भाद्रपद माह की कृष्ण जन्माष्टमी को मांगलिया राजपूत मेहाजी की अष्टमी मनाते हैं।
  • इनकी पूजा करने वाले भोपा की वंश वृद्धि नहीं होती। वे गोद लेकर पीढ़ी आगे चलाते हैं।
  • ‘किरड़ काबरा’ घोड़ा मेहाजी का प्रिय घोड़ा था।

8. कल्ला जी

  • वीर कल्ला राठौड़ का जन्म मारवाड़ के सामियाना गाँव में राव अचलाजी (मेड़ता शासक राव दूदाजा कापुत्र) के घर आश्विन शुक्ला अष्टमी वि.सं. 1601 (सन् 1544 ई.) को हुआ।
  • भक्त शिरोमणी मीरा इनकी चचेरी बहन थी।
  • इन्हें कई सिद्धियाँ प्राप्त थी। प्रसिद्ध योगी भैरवनाथ इनके गुरु थे।
  • चित्तौड़ के तीसरे शाके (1567 ई. में) में महाराणा उदयसिंह जी की ओर से अकबर के विरुद्ध लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। युद्ध में घायल वीर जयमल को इन्होंने अपने कंधे पर बिठाकर युद्ध किया था और दोनों ही युद्ध करते हुए वीर गति को प्राप्त हुए थे। युद्धभूमि में चतुर्भुज के रूप में दिखाई गई वीरता के कारण इनकी ख्याति चार हाथ वाले लोक देवता के रूप में हुई।
  • इन्हें शेषनाग का अवतार माना जाता है। अत: वीर कल्लाजी की पूजा प्रायः नाग के रूप में की जाती है।
  • कल्लाजी को योगाभ्यास व जड़ी-बूटियों एवं इनके उपयोग का अच्छा ज्ञान था।
  • कल्लाजी के भक्त रविवार को इनके मंदिरों, गादियों एवं चौकियों पर एकत्र होकर, इनकी आराधना कर अपने रोगों एवं दुःखों से छुटकारा पाते हैं। इनके श्रद्धालुओं की मान्यता है कि कल्लाजी की आत्मा मंदिर के मख्य सेवक ‘किरणधारी’ के शरीर में प्रवेश कर लोगों के कष्टों को दूर करती है। वह (सेवक) तलवार की सहायता से सभी का उपचार करता है।
  • चित्तौड़गढ़ दुर्ग में भैरव पोल पर कल्लाजी राठौड़ की एक छतरी बनी हुई है।
  • ‘रनेला’ (रुणेला) इस वीर का सिद्ध पीठ है। भूत-पिशाच ग्रस्त लोग, रोगी पशु, पागल कुत्ता, गोयरा, सर्पआदि विषैले जन्तुओं से दंशित व्यक्ति या पशु सभी यहाँ कल्लाजी की कृपा से संताप से छुटकारा पाते हैं।

9. मल्लिनाथ जी 

  • लोकदेवता के रूप में पूज्य मल्लीनाथ जी का जन्म सन् 1358 ई. में मारवाड़ के राव तीड़ा जी (सलखा जी)के घर हुआ। इनकी माता का नाम जाणीदे था।
  • मल्लीनाथजी ने अपने पराक्रम से अपने राज्य ‘महेवा’ का विस्तार किया।
  • मण्डोर पर राठौड़ वंश के शासन के संस्थापक राव चूंडा इनके भतीजे थे। मल्लीनाथजी ने राव चूंडा को मण्डोर (1394 ई.) व नागौर विजय (1397 ई.) में सहायता प्रदान की थी। इन्होंने 1378 ई. में मालवा के सूबेदार निजामुद्दीन की सेना को परास्त किया था।
  • तिलवाड़ा (बाड़मेर) में इनका प्रसिद्ध मंदिर है। यहाँ हर वर्ष चैत्र कृष्णा एकादशी से चैत्र शुक्ला एकादशी तक 15 दिन का मेला भरता है, जहाँ बड़ी संख्या में पशुओं का क्रय-विक्रय भी होता है।
  • लोकमान्यता है कि बाड़मेर के मालाणी क्षेत्र का नाम इन्हीं के नाम पर पड़ा।

10. देव बाबा

  • देव पशु चिकित्सा व आयुर्वेद का का अच्छा ज्ञान होने के कारण देव बाबा गूजरों व ग्वालों के पालनहार एवं कष्टनिवारक के रूप में पूजनीय हो गये।
  • भरतपुर के नंगला जहाज गाँव में देव बाबा का मंदिर है, जहाँ हर वर्ष भाद्रपद शुक्ला पंचमी तथा चैत्र शुक्ला पंचमी को (वर्ष में दो बार) मेला भरता है।

11. मामादेव

  • राजस्थान के लोकदेवताओं में मामादेव एक ऐसे विशिष्ट लोकदेवता हैं, जिनकी मिट्टी-पत्थर की मूर्तियाँ नहीं होती बल्कि लकड़ी का एक विशिष्ट व कलात्मक तोरण होता है, जो गाँव के बाहर की मुख्य सड़क पर प्रतिष्ठित किया जाता है।
  • ये मुख्यतः गाँव के रक्षक एवं बरसात के देव हैं। इन्हें प्रसन्न करने हेतु भैंसे की बलि दी जाती है।

12. तल्ली नाथ जी

  • तल्लीनाथ जी जालौर जिले के अत्यंत प्रसिद्ध लोक देवता हैं। इनका वास्तविक नाम गांगदेव राठौड़ तथा इनके पिता का नाम बीरमदेव था।
  • अपने अद्भुत शौर्य एवं चमत्कारिक कार्यों के कारण ये लोकदेवता के रूप में जनमानस में प्रतिष्ठित हुए। ये शेरगढ़ (जोधपुर) ठिकाने के शासक थे।
  • तल्लीनाथ जी के गुरु का नाम जालंधर नाथ था।
  • गाँव में किसी व्यक्ति या पशु के बीमार पड़ने या जहरीला कीड़ा काटने पर इनके नाम का डोरा बाँधते हैं।

13. आलम जी

  • जेतमलोठ राठौड़ वंशीय आलमजी’ को बाड़मेर जिले के मालाणी प्रदेश के राइधरा क्षेत्र में लोकदेवता के रूप में पूजा जाता है। आलमजी का धोरा’ इनका थान’ (ढांगी नामक रेतीले टीले पर) है जहाँ भाद्रपद शुक्ला दूज (द्वितीया) को इनका मेला भरता है।

14. वीर बग्गाजी

  • लोकदेवता बग्गाजी का जन्म बीकानेर के रीडी (बिग्गा) गाँव के एक जाट कृषक राव महन के घर हुआ था।
  • जाखड़ समाज में इन्हें कुलदेवता के रूप में पूजा जाता है।
  • इन्होंने सम्पूर्ण जीवन गौ-सेवा में व्यतीत किया और अंत में मुस्लिम लुटेरों से गायों की रक्षा करते हुए अपने प्राण न्यौछावर कर दिये।

15. भूरिया बाबा (गोमतेश्वर )

  • दक्षिणी राजस्थान के गौडवाड क्षेत्र की मीणा आदिवासियों के इष्टदेव गौतमेश्वर महादेव (भूरिया बाबा या गौतम बाबा) का प्रसिद्ध मंदिर वहाँ की अरावली पर्वत श्रृंखलाओं में सिरोही जिले के चोटीला (चाँदीला) गाँव के पास प्रकृति की गोद में सुरम्य स्थल पर स्थित है।
  • इनके अनुयायी कभी गौतमेश्वरजी की झूठी कसम नहीं खाते हैं।
  • यहाँ गौतमेश्वर ऋषि महादेव का लिंगाकार विराजमान है। यहाँ 13 अप्रैल से 15 मई तक हर वर्ष प्रसिद्ध मेला लगता है।
  • कहा जाता है कि भयंकर अकाल के समय भी यहाँ गंगा कुण्ड’ का पानी नहीं सूखता बल्कि आस-पास भी 2-3 मीटर खोदने पर ही पानी निकल आता है। गौतमेश्वर महादेव का एक लोकतीर्थ प्रतापगढ़ जिले में अरनोद कस्बे के पास भी है, जिसे वहाँ का आदिवासी समुदाय पाप विमोचक तीर्थ मानता है ।

16. वीर फत्ता जी

  • वर्तमान जालौर जिले के साथू गाँव में जन्मे वीर फत्ता जी ने लुटेरों से अनुयायी गाँव की रक्षा करते हुए अपने प्राणों की बलि दी और सदा के लिए लोकदेवता के रूप में अमर हो गये। साथू गाँव में इनका विशाल मंदिर है, जहाँभाद्रपद शुक्ला नवमी को मेला भरता है।

17. बाबा झुंझार जी

  • स्वतंत्रता से पूर्व सीकर क्षेत्र के इमलोहा गाँव में राजपूत परिवार में जन्मे झंझार जी ने अपने भाइयों के साथ मिलकर मुस्लिम लुटेरों से गायों व गाँव की रक्षा करते हुए अपने प्राण गँवा दिये। तभी से इन्हें लोक मानस द्वारालोकदेवता के रूप में पूजा जाता है। प्रतिवर्ष रामनवमी को इनकी स्मृति में इमलोहा गाँव में मेला लगता है।इनका थान प्रायः खेजड़ी वृक्ष के नीचे होता है।

18. वीर पनराज जी

  • 16वीं शदी में जैसलमेर के नगा गाँव के क्षत्रिय परिवार में पैदा हुए पनराज जी ने पास के काठौड़ी गाँव के ब्राह्मण परिवार की गायों को मुस्लिम लुटेरों से बचाते हुए अपने प्राण न्यौछावर कर दिये और लोकदेवता केरूप में अमर हो गये। इनकी स्मृति में पनराजसर गाँव (जैसलमेर) में वर्ष में दो बार मेला भरता है।

19. हरिरामजी बाबा

  • हरिरामजी ये सर्प दंश का इलाज करते थे। सुजानगढ़-नागौर मार्ग पर झोरड़ा गाँव (चुरू) में इनका मंदिर है। मंदिर में साँप की बांबी एवं बाबा के प्रतीक के रूप में चरण कमल हैं। यहाँ हर वर्ष मेला भरता है। हरिरामजी के पिता का नाम रामनारायण एवं माता का नाम चन्दणी देवी था। शेखावाटी क्षेत्र (चुरु, सीकर, नागौर, झुंझुनूं आदिक्षेत्रों में) इनकी अधिक मान्यता है।

20. केसरिया कुँवरजी

  • केसरिया गोगाजी के पुत्र जो लोकदेवता के रूप में पूजे जाते हैं। इनका भोपा सर्प दंश के रोगी का जहर मुँह सेकुँवरजी चूसकर बाहर निकाल देता है। इनके ‘थान’ पर सफेद रंग का ध्वज फहराते हैं।

21. रूपनाथ जी

  • ये पाबूजी के बड़े भाई बूढो जी के पुत्र थे। इन्होंने अपने पिता व चाचा (पाबूजी) की मृत्यु का बदला (झरड़ा) जींदराव खीची को मारकर लिया। कोलूमण्ड (जोधपुर) के पास पहाड़ी पर तथा बीकानेर के सिंभूदड़ा (नोखामंडी) पर इनके प्रमुख थान (स्थान) हैं। हिमाचल प्रदेश में इन्हें ‘बालकनाथ’ के रूप में पूजा जाता है।

22. डूंगजी – जवाहर जी

  • डूंगजी और जवाहर जी ये दोनों भाई शेखावाटी क्षेत्र में धनी लोगों को लूटकर उनका धन गरीबों एवं जरूरतमंदों में बाँट दिया करते थे, अत: इन्हें लोक देवता के रूप में पूजा जाने लगा। 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में इन्होंने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

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