राजस्थान जिला दर्शन (अलवर) : अलवर जिला दर्शन : Rajasthan jila darshan

By | May 3, 2021
ALWAR JILA DARSHAN

अलवर जिला दर्शन : अलवर जिले की सम्पूर्ण जानकारी

  • अलवर नगर की स्थापना आमेर के राजा काकिल देव के छोटे पुत्र अलघराज द्वारा सन् 1049 में अलपुर नाम से की गई थी।
  •  यह क्षेत्र महाजनपद काल में मत्स्य जनपद के नाम से प्रसिद्ध था जिसकी राजधानी विराटनगर (वर्तमान बैराठ) थी।.
  • यह क्षेत्र राजस्थान के प्राचीनतम क्षेत्रों में गिना जाता है। महाभारत काल में यह मत्स्य क्षेत्र के नाम से जाना जाता था।
  • स्वाधीनता के बाद अलवर के महाराज तेजसिंह ने 18 मार्च, 1948 को भरतपुर, करौली और धौलपुर रियासत के साथ मिलकर अलवर का मत्स्य संघ में विलय कर दिया। 15 मई, 1949 को मत्स्य संघ का राजस्थान में विलय हो गया।
  • अलवर शहर के चारों ओर परकोटे में बने दरवाजों के नाम लाल दरवाजा, दिल्ली दरवाजा, मालाखेड़ा दरवाजा, हिजरी दरवाजा एवं लादिया दरवाजा हैं। शहर में कैलाश बुर्ज, अट्टा मंदिर, मांजी का भव्य मंदिर आदि दर्शनीय स्थल हैं।
  • अलवर राजस्थान का पहला जिला है जिसे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में शामिल किया गया है।
  • अलवर का क्षेत्रफल : 8380 वर्ग कि.मी है। 
  • अलवर की उत्तरी सीमा हरियाणा के रेवाड़ी व महेन्द्रगढ़ जिले से, उत्तरी पूर्वी सीमा हरियाणा के मेवात जिले से व पूर्वी सीमा राजस्थान के भरतपुर जिले से लगती है।
  • अलवर जिले में बहने वाली प्रमुख नदियों में रूपारेल, चूहड़-सिद्ध, सावी, सोतानाला व काली जोड़ी प्रमुख नदियाँ है।

अलवर के प्रमुख मेले

  • भतहरि —  भाद्रपद शुक्ला 08
  • बिलाली माता — चैत्र शुक्ला 7-8
  • चन्द्र प्रभु मेला — फाल्गुन शुक्ला सप्तमी व श्रावण शुक्ला दशमी
  • धौलागढ़ देवी का मेला — वैसाख सुदी प्रतिपदा से पूर्णिमा
  • साहिबकी का मेला — पर्यटन विभाग द्वारा आयोजित

अलवर के प्रमुख मंदिर

  • नारायणी माता — अलवर में राजगढ़ तहसील में बरवा दूंगरी की तलहटी में सघन वृक्षों से घिरा यह स्थान सभीसम्प्रदायों एवं वर्गों का आराध्य स्थल है। प्रतिवर्ष वैशाख शुक्ला एकादशी को यहाँ नारायणी माता कामेला भरता है। नारायणी माता नाइयों की कुल देवी है।
  • बाबा मोहनराम — यह थान मलिकपुर (भिवाड़ी) गाँव में पहाड़ी पर स्थित है, जो लोक आस्था का प्रमुख केन्द्र है।
  • अलाउद्दीन आलमशाह तिजारा में स्थित।
  • रावण पार्श्वनाथ मंदिर — अलवर शहर में स्थित जैन मंदिर। जिसमें रावण पार्श्वनाथ जैन प्रतिमा है।
  • नौगावाँ के जैन मंदिर — अलवर-दिल्ली मार्ग पर स्थित नौगावाँ कस्बा समूचे उत्तरी भारत में दिगम्बर जैन समाज का प्रमुख केन्द्र माना जाता है। नौगावाँ स्थित जैनमंदिरों में तीर्थंकर श्री मल्लीनाथ जी का नौचौकिया मंदिर अति प्राचीन है, जिसका निर्माण संवत् 803 में हुआ। इस मंदिर की श्री मल्लीनाथ की प्रतिमा की विशेषता है कि इस पर आगे के निचले हिस्से पर कुछ अंकित होने की बजाय इसकी पीठ पर प्रशस्ति अंकित है। ‘ऊपर वाला मंदिर’ के नाम से जैन तीर्थकर शांतिनाथ भगवान का विशाल मंदिर भी यहाँ है।
  • नीलकंठ महादेव मंदिर — सरिस्का टाइगर रिजर्व में स्थित यह मंदिर बड़गूजर राजा मंथन देव ने टहला (राजगढ़) में बनवाया। यह खजुराहो की तरह बना है।

अलवर के पर्यटक और दार्शनिक स्थल

  • मूसी महारानी की छतरी — अलवर राजप्रासाद के पिछवाड़े सागर तालाब के किनारे महाराजा बख्तावर सिंह और मूसी महारानी की स्मृति में लाल पत्थर व सफेद संगमरमर से बनी इस दो मंजिली छतरी का निर्माण बख्तावर सिंह महारानी के दत्तक पुत्र महाराजा विनय सिंह ने करवाया था। यह संगमरमर के कल 80 कलात्मक स्तंभों पर टिकी है। इस द्विमंजिला छतरी में पहली मंजिल लाल पत्थरों व दूसरी सफेद संगमरमर से बनी है। यह छत्री इंडो-इस्लामिक शैली में निर्मित है।
  • सिटी पैलेस — इस महल का निर्माण सन् 1793 ई. में राजा बख्तावर सिंह ने करवाया था। इस पैलेस के एक ओर मूसी महारानी की छतरी हैं तथा उसके पास ही सागर झील है। 
  • अलवर संग्रहालय — अलवर के अंतिम शासक महाराजा तेजसिंह के शासनकाल में नवम्बर, 1940 में अलवर संग्रहालय की स्थापना हुई।
  • ईटाराणा की कोठी — उत्कृष्ट जाली झरोखों व तोरणनुमा टोडे से युक्त इस मनोहारी व मेहराबदार छतरियों वाले भवन का निर्माण अलवर महाराजा जयसिंह ने करवाया था।
  • सिलीसेढ़ महल — महाराजा विनय सिंह द्वारा अपनी रानी शीला के लिए प्रसिद्ध सिलीसेढ़ झील के किनारे निर्मित भव्य महल। सिलीसेढ़ झील इनका निर्माण महाराजा विनयसिंह ने कराया था। सिलीसेढ़ झील को ‘राजस्थान का नंदन कानन’ कहते हैं।
  • मोती डूंगरी — इसे मूल रूप से 1882 में निर्मित किया गया था। 1928 तक यह अलवर के शासकों का शाही निवासथा। 1928 के बाद महाराजा जयसिंह ने इसका जीर्णोद्धार करवाया।
  • सरिस्का टाइगर रिजर्व — 1955 में स्थापित राजस्थान का दूसरा टाइगर प्रोजेक्ट (बाघ परियोजना)। यहाँ पर महाराजा जयसिंह ने ड्यूक ऑफ एडिनबर्ग की यात्रा के लिए 1902 में एक शानदार महल ‘सरिस्का पैलेस’ बनवाया था। इसी अभयारण्य में भर्तृहरि की गुफाएँ, पाराशर आश्रम आदि स्थित हैं। इसे ‘बाघ की मांद’ कहा जाता है। इसे 1978-79 में बाघ परियोजना में शामिल किया गया।
  • भानगढ़ — भानगढ़ का निर्माण जयपुर के शासक मानसिंह के भाई माधोसिंह ने 17वीं शताब्दी में कराया था। आज इसे भूतिया किले के रूप में जाना जाता है।
  • तालवृक्ष — यह ऋषि मांडव्य की तपोभूमि है। यहाँ गंगा माता का प्राचीन मंदिर है। यहाँ छठी शताब्दी का एक प्राचीन शिव मंदिर है जिसके हर पत्थर पर ओम अंकित है।
  • कुतुबखाना — अलवर के महाराजा विनयसिंह के शासनकाल में सन् 1894 में अलवर में जिस पुस्तकालय की स्थापना की गई उसे ‘कुतुबखाना’ के नाम से जाना जाता है।
  • भर्तृहरि — भर्तृहरि नाथों का प्रसिद्ध स्थल है। उज्जैन के राजा व महान योगी भर्तृहरि की तपोस्थली जहाँ प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ला अष्टमी को भर्तृहरि का मेला भरता है।
  • थानागाजी — अलवर का यह गाँव लाल पत्थर की मूर्तियों के लिए प्रसिद्ध है। किशोरी गाँव अलवर का यह गाँव कागजी टेराकोटा के लिए प्रसिद्ध है।

महत्वपूर्ण तथ्य :

  • अलवर को राजस्थान के “सिंह द्वार” के नाम से जाना जाता है।
  • अलवर प्राचीन मत्स्य प्रदेश का हिस्सा रहा है जिसकी राजधानी विराटनगर थी।
  • अलवर जयपुर संभाग में स्थित है।
  • मुगल बादशाह बाबर ने इस किले का सामरिक महत्त्व समझते हुए अपने पुत्र हुमायूँ को मेवात क्षेत्र का राज्यपाल नियुक्त किया था। यही किला उसका मुख्यालय था।
  • मुगल बादशाह अकबर ने अपने पुत्र सलीम (जहाँगीर) को इसी किले में नजरबंद किया था।
  • मुगल बादशाह अकबर ने अपने पुत्र सलीम (जहाँगीर) को इसी किले में नजरबंद किया था।
  • अलवर दुर्ग के पास ही स्थित “मूसी महारानी की छतरी” है, जो राजपूत स्थापत्य कला की एक अद्भुत मिसाल है।
  • तत्कालीन महाराजा बख्तावर सिंह और उनकी महारानी मूसी की स्मृति में बनी यह छतरी संगमरमर के 80 खंभों पर टिकी है।
  • अलवर में सिंचाई की दृष्टि से सन् 1910 ई. में महाराज जयसिंह द्वारा “जयसमंद बांध’ का निर्माण कराया गया था।
  • अरावली पर्वत शृंखलाओं के मध्य 1955 ई. में “सरिस्का अभयारण्य’ में बाघों के सुरक्षित क्षेत्र “टाइगर सेंक्चुरी’ की स्थापना टाइगर प्रोजेक्ट के तहत की गई।
  • उज्जैन के राजा और महायोगी भर्तहरि ने अपने अंतिम दिनों में अलवर का ही अपनी तपस्थली बनाया था।
  • अलवर ‘कलाकंद’ के लिए भी मशहूर है।
  • अहीरवाटी यहाँ की स्थानीय बोली है जो मेवाती भी कही जाती है।
  • बाला किला, अलवर : इस किले की दीवारों पर बंदूक चलाने के छिद्रों के कारण इस किले को “आख वाला किला ” कहते हैं।

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