राजस्थान की प्रमुख लोक देवियां : rajasthan ki lok deviyan : Rajasthan gk

By | May 18, 2021

राजस्थान की प्रमुख लोक देवियां

करणी माता (बीकानेर)

  • ‘चूहों वाली देवी’ के नाम से विख्यात करणी माता बीकानेर के राठौड़ शासकों की कुल देवी है। इनका जन्म सुआप गाँव में चारण जाति के श्री मेहा जी के घर हुआ था। देशनोक (बीकानेर) इनके मंदिर में बड़ी संख्या में चूहे हैं जो करणी जी के काबे’ कहलाते हैं। चारण लोग इन चूहों को अपना पूर्वज मानते हैं । यहाँ के सफेद चूहे के दर्शन करणी जी के दर्शन माने जाते हैं। करणी जी का मंदिर मठ कहलाता है। ऐसी मान्यता है कि करणी जी ने देशनोक कस्बा बसाया था।
  • करणी माता का बचपन का नाम रिद्धि बाई था।
  • करणीजी की इष्ट देवी ‘तेमड़ा जी’ थी। करणी जी के मंदिर के पास तेमड़ा राय देवी का भी मंदिर है।
  • चील के पक्षी को करणी माता का प्रतिक माना जाता है। तथा स्थानीय भाषा में इसे संवली कहा जाता है।
  • करणी माता के मंदिर से कुछ दूर ‘नेहड़ी’ नामक दर्शनीय स्थल है, जहाँ करणी माता सर्वप्रथम रही थी। यहाँ स्थित शमी (खेजड़ी) के एक वृक्ष पर माता डोरी बाँधकर दही बिलोया करती थी। इस वृक्ष की छाल नाखून से उतारकर भक्त गण अपने साथ ले जाते हैं। इसे चाँदी के समान शुद्ध माना जाता है।
  • मेहरानगढ़ दुर्ग की नीव करणी माता ने रखी थी. तथा राव बीका ने करणी माता के आशीर्वाद से ही जंगलप्रदेश को जीता था।
  • करणी जी के मठ के पुजारी चारण जाति के होते हैं।

कैला देवी (करौली)

  • कैला देवी करौली के यदुवंश (यादव वंश) की कुल देवी हैं। कैला देवी का मंदिर करौली के पास त्रिकूटपर्वत की घाटी में स्थित है। इनके भक्त इनकी आराधना में प्रसिद्ध ‘लांगुरिया गीत गाते हैं।
  • इन्हे अंजनी माता का अवतार माना जाता है।
  • चैत्र नवरात्रा में चैत्र शुक्ला अष्टमी को इनका विशाल लक्खी मेला भरता है।
  • लोकमान्यता है कि कंस ने अपनी बहन देवकी की जिस नवजात कन्या को शिला पर पटककर मारना चाहा था, वही कन्या देवयोग से करौली के त्रिकूट पर्वत पर ‘कैलादेवी’ के रूप में अवतरित हुई।

जीण माता (सीकर)

  • जीणमाता का मुख्य मंदिर रैवासा (सीकर) में स्थित है। इनके मंदिर का निर्माण पृथ्वीराज चौहान-प्रथम के शासन काल में राजा हट्टड़ द्वारा करवाया गया था, जिसमें जीण माता की अष्टभुजी प्रतिमा है। जीणमाता तांत्रिक शक्तिपीठ है।
  • चौहान वंश की आराध्य देवी जीण माता धंध राय की पुत्री एवं हर्ष की बहिन थी।
  • जीणमाता ने आजीवन ब्रह्मचारिणी रहकर घोर तपस्या कर शक्तियाँ अर्जित की और देवी के रूप मेंप्रतिष्ठित हुई।
  • जीणमाता के मंदिर में चैत्र एवं आश्विन माह की शुक्ला नवमी को विशाल मेले भरते हैं।
  • प्रतिमा के सामने घी एवं तेल की दो अखण्ड ज्योति सदैव प्रज्वलित रहती है।
  • जीण माता का गीत राजस्थानी लोक साहित्य में सबसे लम्बा है। यह गीत कनफटे जोगियों द्वारा डमरु एवं सारंगी वाद्य की संगत में गाया जाता है।
  • इनका अन्य नाम भ्रामरी देवी (भूरी की राणी) भी है।

जमुवाय माता 

  • जमुवाय माता आमेर के कछवाहा राजवंश की कुल देवी हैं।
  •  इनका मंदिर जमुवारामगढ़ (जयपुर) में है।
  • जमुवाय माता का प्राचीन नाम जामवन्ती था। यहाँ जयपुर के शासकों व उनके परिवारों के जात-जडले एवं अन्य सभी लोकोपचार कार्य संपन्न होते हैं । यहाँ जमवायमाता की मूर्ति गाय एवं बछड़े के साथ प्रतिष्ठित है।
  • जमुवाय माता के नाम पर ही कस्बे का नाम जमुवा रामगढ़ पड़ा है।

 शिला देवी (अन्नपूर्णा ) आमेर

  • शिला माता आमेर के शासको की आराध्य देवी है। 
  • शिलादेवी के रूप में प्रतिष्ठित दुर्गा की अष्टभुजी काले पत्थर की मूर्ति को 16वीं सदी के अंत में आमेर के महाराजा मानसिंह-प्रथम पूर्वी बंगाल के राजा केदार, (जो जैसोर के राजा प्रतापदित्य का सामंत था) से लाये थे।
  • मानसिंह ने यह मूर्ति राजमहल के पास संरक्षण करने वाली देवी के रूप में स्थापित की थी।
  • यहाँ शिलादेवी महिषासुर मर्दिनी के रूप में विराजमान हैं।
  • इन्हे शराब व पानी का चरणामृत चढ़ाया जाता है।

आई जी माता, बिलाड़ा (जोधपुर)

  • आई माता का मुख्य मंदिर बिलाड़ा (जोधपुर) में स्थित है। 
  • आई माता रामदेव जी की शिष्या थीं। इन्होंने छुआछूत की भावना को दूर कर निम्न वर्ग को ऊँचा उठाने का कार्य किया। ये नवदुर्गा (मानी देवी) का अवतार मानी जाती हैं तथा सिरवी जाति के क्षत्रियों की कुल देवी हैं ।
  • भक्त इनके मंदिर को दरगाह’ भी कहते हैं। इनका थान बडेर’ कहलाता है।
  • आई माता के थान पर अखण्ड ज्योति प्रज्वलित रहती है, जिससे हमेशा केसर टपकती रहती है।

राणी सती (झुंझुनू)

  • राणी सती का मुख्य मंदिर झुंझुनू में स्थित है।
  • अग्रवाल जाति की राणी सती का वास्तविक नाम नारायणी था। इनके पति का नाम तनधन दास था।पति की मृत्यु के बाद नारायणी सती हो गई। राणी सती के मंदिर में हर वर्ष भाद्रपद अमावस्या को मेला भरता है।लगा दिया गया है ताकि किसी स्त्री को जबरन सती होने से रोका जा सके।
  • राणी सती को ‘दादी जी’ भी कहते हैं।
  • अब राज्य में सती की पूजा एवं महिमा मंडन पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया है ताकि किसी स्त्री को जबरन सती होने से रोका जा सके।

शीतला माता, चाकसू (जयपुर)

  • शीतला माता का मुख्य मंदिर शील की डूंगरी ,चाकसू (जयपुर) में स्थित है। 
  • इनके मंदिर का निर्माण जयपुर के महाराजा श्री माधोसिंह जी ने करवाया था। होली के पश्चात चैत्र कृष्णा अष्टमी (शीतलाष्टमी) को इनकी वार्षिक पूजा होती है एवं चाकसू के मंदिर पर विशाल मेला भरता है। इस दिन लोग बास्योड़ा मनाते हैं अर्थात् रात का बनाया ठण्डा भोजन खाते हैं।
  • चेचक की देवी के रूप में प्रसिद्ध शीतला माता के अन्य नाम सैढल माता या महामाई भी हैं।
  • शीतला माता की सवारी गधा है। यह बच्चों की संरक्षिका देवी है तथा बांझ स्त्रियाँ संतान प्राप्ति हेतु भी इसकी पूजा करती हैं।
  • शीतला देवी की पूजा खंडित प्रतिमा के रूप में की जाती है तथा इसके पुजारी कुम्हार जाति के होते हैं।
  • इन्हें मानव शरीर को शीतलता प्रदान करने वाली देवी माना गया है।
  • शीतला माता की पूजा ‘चेचक निवारक देवी’ के रूप में भी की जाती है।
  • शीतलामाता को उत्तरी भारत में महामाई (मातामाई) एवं पश्चिमी भारत में माई अनामा भी कहते हैं।

सकराय माता

  • सकराय माता का मंदिर उदयपुरवाटिका (झुंझुनू) में स्थित है।
  • इन्हें ‘शाकम्भरी देवी’ भी कहते हैं। इस मंदिर में महिषासुर मर्दिनी की अष्टभुजी एवं सिंहवाहिनी की प्रतिमा विद्यमान हैं। देवी के पास उल्लू की मूर्ति है।
  • यह देवी खंडेलवालों की कुलदेवी’ है।
  • शाकम्भरी देवी का एक मंदिर सांभर में तथा दूसरा मंदिर सहारनपुर में भी स्थित है। चैत्र एवं आश्विन माह के नवरात्रों में देवी के मंदिर में विशाल मेला भरता है।
  • ऐसी मान्यता है कि अकाल पीड़ितों की रक्षार्थ फल-सब्जियाँ व कंदमूल-फल उत्पन्न करने के कारण ही इनका नाम शाकम्भरी देवी पड़ा। इन्हें शंकरा माता व शुक्रमाता आदि नामों से भी पुकारा जाता है।
  • शाकम्भरी देवी शोक रहित, दुष्टों का दमन करने वाली तथा पाप एवं विपत्ति को शांत करने वाली देवी है। इन्हें पुराणों में शताक्षी एवं दुर्गा कहा गया है।

सच्चिका माता

  • ये सचियामाता के नाम से भी प्रसिद्ध हैं। ओसियां (जोधपुर) में इनका प्रसिद्ध मंदिर है। इस मंदिर का निर्माण संभवत: परमार राजकुमार उपलदेव द्वारा कराया गया था। मंदिर में काले पत्थर की महिषासुर मर्दिनी की प्रतिमा विराजमान है। इस प्रतिमा में देवी की संहारक शक्ति की प्रभावशाली अभिव्यक्ति हुई है।
  • सचिया माता ओसवालों की कुलदेवी’ हैं।

आवड़ माता (जैसलमेर)

  • आवड माता जैसलमेर के भाटी राजवंश की कुल देवी हैं। जैसलमेर के तेमड़ी भाखर (पर्वत) पर इनका मंदिर है।
  • लोकमानस में सुगनचिड़ी को आवड़ माता का स्वरूप माना जाता है।
  • भक्तजनों द्वारा आवड़ माता को ‘हिंगलाज माता’ का अवतार माना जाता है। इनका जन्म चारण कुल में ‘मामड़जी’ के घर में हुआ था। आवड़ माता को तेमड़ाताई’ भी कहा जाता है।
  • मान्यता के अनुसार इस देवी को अथाह जल राशि को तीन चुल्लू में भर लेने तथा राक्षसों के संहार के कारण प्रसिद्धि प्राप्त हुई।

स्वांगियाजी (जैसलमेर)

  • यह जैसलमेर के भाटी राजवंश की कुल देवी है।
  • इनका मुख्य मंदिर जैसलमेर में स्थित है।
  • आवड़ देवी का ही एक रूप स्वांगिया माता (आईनाथजी) भी है, जो जैसलमेर के निकट विराजमान हैं।
  • जैसलमेर के राजचिह्न में देवी के हाथ में स्वांग (भाला) का मुड़ा हुआ रूप दिखाया गया है। इस राजचिन्ह में सबसे ऊपर पालम चिड़िया (सगुनचिड़ी) इस देवी का प्रतीक है।

अम्बिका माता

  • अम्बिका माता का मंदिर जगन (उदयपुर ) में स्थित है। जो शक्तिपीठ कहलाता है ।
  • जगत का अम्बिका मंदिर मेवाड़ का खजुराहो’ कहलाता है। यह राजा अल्लट के काल में 10वीं शती के पूर्वार्द्ध में महामारू शैली में निर्मित है। यह मंदिर मातृदेवियों को समर्पित है । यहाँ नृत्य गणपति की विशाल प्रतिमा स्थित है।

पथवारी माता

  • तीर्थयात्रा की सफलता की कामना हेतु राजस्थान में पथवारी देवी की लोक देवी के रूप में पूजाकी जाती है। पथवारी देवी गाँव के बाहर स्थापित की जाती है। इनके चित्रों में नीचे काला-गौरा भैरुं तथा ऊपर कावड़िया वीर व गंगोज का कलश बनाया जाता है।

सुगाली माता

  • आउवा के ठाकुर परिवार (चाँपावतों) की कुलदेवी सुगाली माता पूरे मारवाड़ क्षेत्र की जनता कीआराध्य देवी रही है। इस देवी प्रतिमा के दस सिर और चौपन हाथ हैं।
  • राजस्थान में 1857 ई. के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में आउवा के ठाकुर कुशाल सिंह चाँपावत का अविस्मरणीय योगदान रहा है। सुगाली माता का स्थान ही ठाकुर की इस क्रांति का मुख्य केन्द्र रहा था।

सुंडा( सुंधा) माता

  • जालौर जिले के जसवंतगढ़ कस्बे के पास दाँतलावास ग्राम के सुंडा (सुगंधाद्रि) पर्वत पर इस देवी का प्रसिद्ध मंदिर है। यह एक प्राचीन तांत्रिक शक्तिपीठ है। मंदिर में जालौर के चौहान शासकों का एक शिलालेख भी उत्कीर्ण है। चामुण्डादेवी (सुंधा माता) को सूंघा माता भी कहते हैं।
  • इनके मंदिर में राजस्थान का प्रथम रोपवे लगाया गया है।
  • सुंधा माता के केवल सिर की पूजा होती है। मूर्ति में धड़ नहीं होने से इन्हें अधरेश्वरी माता भी कहते हैं।

त्रिपुर सुन्दरी

  • त्रिपुरा सुंदरी का मंदिर बांसवाड़ा के तलवाड़ा ग्राम में स्थित है। 
  • माना जाता है कि देवी माँ की इस पीठ की स्थापना तीसरी सदी के पहले हो चुकी थी। माँ त्रिपुर सुंदरी गुजरात के सोलंकी राजा सिद्धराज जयसिंह की इष्ट देवी थी। 12वीं शताब्दी के प्रारंभ में चाँदा भाई (उर्फ पाता लुहार) ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया।

दधिमति माता 

  • दधिमति माता का मंदिर गोठमांगलोद (नागौर) में स्थित है।
  • यह माता दाहिमा/दायमा/दाधीच ब्राह्मणों की कुलदेवी हैं। यहाँ चैत्र एवं आश्विन नवरात्रों में विशाल मेले लगते हैं।श्रद्धालु निकटस्थ कपालकुण्ड में स्नानादि कर माता की पूजा-वंदना करते हैं। 

वीरातरा माता

  • चौहटन (जिला बाड़मेर ) से 10 किमी. दूरी पर लाख एवं मुद्गल वृक्षों के बीच रमणीक पहाड़ी क्षेत्र के बीच में माता वीरातरा का भव्य मंदिर है।
  • माता वीरातरा भोपों की कुल देवी है। यहाँ माँ जगदम्बा की आकर्षक आकर्षक प्रतिमा विराजमान है।
  • यहाँ मेले में नारियल की जोत जलाई जाती है एवं बकरों की बलि दी जाती है।
  • मंदिर के एक ओर बालू का रेतीला टीला है तथा दूसरी ओर पहाड़ स्थित है, जो यहाँ की विशेषता है।

ब्राह्मणी माता

  • बारां जिले के सोरसन ग्राम में ब्राह्मणी माता का विशाल प्राचीन मंदिर स्थित है। जहाँ देवी की पीठ का श्रृंगार होता है एवं पीठ की ही पूजा-अर्चना की जाती है एवं भक्तगण भी देवी की पीठ के ही दर्शन करने आते हैं। विश्व में संभवत: यह अकेला मंदिर है जहाँ देवी की पीठ की ही पूजा होती है अग्र भाग की नहीं। यहाँ माघ शुक्ला सप्तमी को गधों का मेला भी लगता है।

जिलाणी माता

  • जिलाणी माता का मंदिर अलवर जिले के बहरोड़ कस्बे में स्थित है।
  • ये अलवर क्षेत्र की लोकदेवी हैं। इनके मंदिर में प्रतिवर्ष दो बार मेला भरता है। जिलाणी गुजरी ने मस्लिम शासकों द्वारा जबरन पकड़े गये हिन्दुओं को बलात् मुसलमान बनाने के प्रयत्नों को अपनी बहादुरी एवं पराक्रम के बल पर निष्फल कर दिया था। तब से ही इन्हें लोकदेवी के रूप में माना जाने लगा।

कैवायमाता

  • किरणसरिया गाँव, परबतसर (नागौर) में लगभग 1000 फुट ऊँची पर्वत चोटी पर कैवायमाता का प्राचीन मंदिर स्थित है।
  • मंदिर के सभाग्रह के प्रवेशद्वार पर काला-गोरा भैरव की दो मूर्तियाँ विराजमान हैं।
  • मंदिर के एक शिलालेख में उल्लेख है कि महर्षि दधीचि द्वारा देवताओं को राक्षसों से युद्ध करने के लिए शस्त्र निर्माण हेतु अपनी हड्डियाँ दान कर दी गई थी।महर्षि दधीचि के वंशज ही दधीचिक (दधीचि) कहलाए।

आशापुरी माता

  • आशापुरी माता का मदिर जालौर (मोदरा) में स्थित है। 
  • इन्हें मोदरां माता या महोदरी माता के नाम से भी जाना जाता है।
  • ये जालौर के सोनगरा चौहान शासकों की कुलदेवी हैं। आशापूर्ण करने वाली देवी डोर के कारण ही इन्हें आशुपरी देवी के नाम से जाना जाता है।

शांकम्भरी देवी

  • सांभर (जयपुर) में देवी का मंदिर स्थित है। यह चौहानों की कुलदेवी है। चौहानों का आरंभिकशासन सांभर के आसपास के क्षेत्र ‘सपादलक्ष’ में था। 

अर्बुदा

  • माउंट आबूकस्बे के उत्तर में लगभग 4200 फीट ऊँची पहाड़ी पर अर्बुदांचल की अधिष्ठात्री अर्बुदादेवी’ का भव्य मंदिर है। मंदिर के विशाल शिला के नीचे स्थित होने के कारण सँकड़े मार्ग से बैठकर जाना पड़ता है।
  • देवी की मूर्ति दूर से देखने पर भूमि का स्पर्श करते हुए नहीं दिखती अत: इसे अधर देवी’ भी कहते हैं।

भद्रकाली

  • हनुमानगढ़ टाउन से 5 मिमी. दूरी पर स्थित इस मंदिर में माँ दुर्गा की भव्य प्रतिमा विराजमान है। यहाँ प्रतिवर्ष चैत्र एवं आश्विन माह के शुक्ल पक्ष में नवरात्रों के अवसर पर भव्य मेला लगता है।

छींक माता

  • राज्य में माघ सुदी सप्तमी को छींक माता की पूजा होती है। जयपुर के गोपालजी के रास्ते में इनका मंदिर है।

दाँतमाता

  • कोटा शहर से लगभग 20 किमी. की दूरी पर द्रष्टामाता (श्रीद्रष्टा मोर डेरू माता) का प्रसिद्ध मंदिर है। (द्रष्टामाता) यह देवी कोटा राजपरिवार की कुलदेवी थी। नवरात्रों में श्रद्धालु दूर-दूर से माता के दर्शनाथ आते हैं।

चौथमाता

  • चौथ का बरवाड़ा कस्बे (जिला सवाईमाधोपुर) के नजदीक ऊँची पहाड़ी पर चौथमाता का प्रसिद्ध मंदिर है। माता के मंदिर के पास ही अखण्ड ज्योति है। मंदिर के पीछे गोरे एवं काले भैरव की प्रतिमाएँ हैं।

गायत्री माता

  • पुष्कर (अजमेर) में सावित्री मंदिर के सामने सुरम्य पहाड़ी पर माता गायत्री का प्राचीन मंदिर स्थित है। यह भगवती के इक्यावन शक्ति पीठों में से एक है। यहाँ देवी के मणिबंधों की पूजा होती है। ये देवी ‘शापविमोचनी देवी’ में रूप में मान्यता प्राप्त हैं।

सीतामाता

  • प्रतापगढ़ जिले में सीताबाड़ी गाँव से 2 किमी. दूरी पर सीतामाता वन्यजीव अभयारण्य के सुरम्य उपवन में सीतामाता का प्राचीन मंदिर अवस्थित है।यहाँ सीतामाता मंदिर में प्रतिवर्ष ज्यैष्ठ अमावस्या को भव्य मेला लगता है, जो कृष्णा चतुर्दशी से शुक्ला प्रतिपदा तक चलता है।

नकटी माता

  • जयपुर के निकट जय भवानीपुरा में ‘नकटी माता’ का प्रतिहारकालीन मंदिर है।

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