टोंक जिला दर्शन : टोंक जिले की सम्पूर्ण जानकारी
राजस्थान के लखनऊ नाम से विख्यात टोंक के बारे में प्राचीन अभिलेख के अनुसार अकबर के शासनकाल में जयपुर रियासत के राजा मानसिंह ने भोला नाम के ब्राह्मण को टोकरा के 12 गाँव भूमि के रूप में स्वीकृत किए जिसने इन ग्रामों के समूह को मिलाकर टोंक का नामकरण किया। टोंक जिला राजस्थान के उत्तरी-पूर्वी भाग में स्थित है। इसके उत्तर में जयपुर, पूर्व में सवाई माधोपुर, दक्षिण में कोटा, बूंदी तथा भीलवाड़ा व पश्चिम में अजमेर जिला स्थित है। चलो टोंक जिले के बारे में और अधिक जानते है –
- टोंक का क्षेत्रफल :7194 वर्ग किमी है।
- इसकी की मानचित्र स्थिति – 25°41′ से 26°24′ उत्तरी अक्षांश तथा 75°19′ से 76°16′ पूर्वी देशान्तर है।
- टोंक जिले में कुल वनक्षेत्र – 331.56 वर्ग किलोमीटर है।
- टोंक जिला उत्तर में जयपुर, पूर्व में सवाईमाधोपुर, दक्षिण में बूंदी व भीलवाड़ा तथा पश्चिम में अजमेर जिले से घिरा हुआ है।
- इस जिले का आकार पतंगाकार है। राजस्थान के आकार के समान आकार वाला जिला भी टोंक है।
- राजस्थान में टोंक को नवाबों की नगरी के नाम से जाना जाता है।
- बनास नदी टोंक जिले में बहने वाली सबसे बड़ी नदी है। इस नदी पर ही बीसलपुर बाँध बना हुआ है। यह टोंक जिले की सबसे बड़ी जल परियोजना है।
- टोरडी सागर बाँध, गलवा बाँध, माशी बाँध टोंक जिले के अन्य बाँध है।
- टोंक बीड़ी व नमदों के लिए प्रसिद्ध हैं। यह जिला चमड़ा उद्योग में भी अपनी विशिष्ट पहचान रखता है।
- टोडारायसिंह तहसील का मेहरकला गाँव चटाई व टोकरी उद्योग के लिए प्रसिद्ध है। इस जिले में चक्की के पाट व सिलबट्टों का निर्माण भी किया जाता है।
- टोंक के स्वादिष्ट खरबूजे व तरबूज पूरे देश में प्रसिद्ध है।
- चारबैत गायन शैली टोंक की विशिष्ट लोक गायन शैली है।
टोंक के प्रमुख मेले
- बीसलपुर मेला — बीसलपुर
- पुलानी एकादशी — डिग्गी
- देवनारायण मेला — देवधाम, जोधपुरिया
- डिग्गी कल्याणजी का मेला — डिग्गी मालपुरा
टोंक के प्रमुख मंदिर
- जोधपुरिया देवधाम — टोंक जिले की औद्योगिक नगरी निवाई में माशी बाँध, मनोहरपुरा के निकट देवनारायण जी का एक अति प्राचीन, पौराणिक तीर्थस्थल-जोधपुरिया देवधाम के नाम से सुविख्यात है। यहाँ भाद्रपद व माघ माह में मेला भरता है। 7 सितम्बर, 2011 को देवनारायण जी पर 5 रु. का डाक टिकट जारी किया गया।
- जामा मस्जिद, टोंक — टोंक टोंक की ऐतिहासिक जामा मस्जिद का निर्माण टोंक राज्य के संस्थापक नवाब अमीर खाँ पिंडारी ने शुरु कराया जिसे उसके पुत्र नवाब वजीरुद्दौला ने पूरा किया। इसमें सोने की चित्रकारी का काम नवाब मोहम्मद इब्राहिम खाँ के समय करवाया गया।
- कल्याणजी का मंदिर — इसका निर्माण मेवाड़ के महाराणा संग्रामसिंह के राज्यकाल में राजा डिग्वा ने करवाया हुआ। यहाँ विष्णु की प्रतिमा है। मुस्लिम इसे कलंह पीर के नाम से पुकारते हैं। यहाँ श्रद्धालु ताड़केश्वर मंदिर (जयपुर) से दण्डवत लगाते हुए आते हैं। डिग्गीपुरी के कल्याणजी को स्मरण करते हुए यह लोकगीत गाते हैं- ‘म्हारा डिग्गीपुरी का राजा, थारे बाजे छे नोबत बाजा।’ यहाँ श्रावणी अमावस्या (हरियाली अमावस्या) को विशाल मेला भरता है। इसके अलावा यहाँ वैशाखी पूर्णिमा, कार्तिक पूर्णिमा, पाटोत्सव, जलझूलनी एकादशी, अन्नकूट आदि को भी मेले भरते है। श्रावण व भाद्रपद माह में यात्री पदयात्रा करते हुए यहाँ पहुँचते हैं।
- रामद्वारा सोड़ा — टोंक जिले के सोड़ा ग्राम में स्थित यह रामस्नेही सम्प्रदाय का एक तीर्थ धाम है।
- गोकर्णेश्वर — गोकर्णेश्वर टोंक जिले के बीसलदेव ग्राम में गोकर्णेश्वर (बीसलदेव) महादेव का प्राचीन मंदिर बनास नदी के तट पर स्थित है। यह मंदिर विग्रहराज चतुर्थ ने बनवाया।
- अन्य मंदिर — कंकाली मंदिर, तेलियों का मंदिर, यज्ञ के बालाजी का मंदिर, अन्नपूर्णा मंदिर आदि।
टोंक के प्रमुख दर्शनीय स्थल
- टोडारायसिंह — यहाँ बुधसागर सरोवर व सतलोज सरोवर स्थित है। बुध सागर सरोवर बूंदी नरेश बुधसिंह के नाम तथा सतलोज सरोवर का नामकरण सोलंकी शासक राव सातल के नाम पर हुआ।
- सनहरी कोठी — टोंक की सनहरी कोठी का निर्माण सन् 1824 में नवाब अमीर खाँ द्वारा प्रारम्भ किया गया जो 1834 ई. में टोंक के नवाब वजीरुद्दौला खाँ के समय पूर्ण हुआ। यह शीश महल के नाम से जानी जाती थी। इस कोठी को ‘Golden Mansion of Tonk’ कहा जाता है। यह दो मंजिला कोठी है। इसकी दूसरी मंजिल नवाब इब्राहीम अली खाँ ने 1870 में बनवाई। इस कोठी में स्वर्ण की नक्काशी व चित्रकारी का कार्य नवाब इब्राहीम खाँ ने करवाया, तभी से यह सुनहरी कोठी कहलाती है। अत: सुनहरी कोठी का निर्माणकर्ता इब्राहीम खाँ को ही मानते हैं।
- मुबारक महल — टोंक में मुबारक महल में ईदुलजुहा पर ऊँट की कुर्बानी दी जाती है। रियासत टोंक के पहले शासक नवाब अमीर खाँ पिण्डारी (अमीरुद्दौला) ने 1817 में टोंक रियासत की स्थापना के बाद ऊँट की कुर्बानी शुरू की थी।
- राजमहल — देवली से 12 किमी दूर इस स्थान पर बनास, खारी एवं डाई नदियों का त्रिवेणी संगम है।
- ककोड़ का किला — टोंक जिले में टोंक-सवाई माधोपुर मार्ग पर स्थित गगनचुम्बी दुर्ग।
- माण्डकला — देवली तहसील में स्थित यह स्थल माण्डव ऋषि की तपोस्थली थी। यहाँ पवित्र जलाशय है। इसका महत्व ‘पुष्कर’ के समान ही है। यहाँ मुचकुन्देश्वर महादेव का मंदिर है।
- जलन्धर नाथ — निवाई कस्बे में पहाड़ी पर स्थित नाथ सम्प्रदाय का प्राचीन स्थल जहाँ जालन्धर नाथ की गुफा भी है।
- हाथी भाटा — टोक के गुमानपुरा गाँव में स्थित जिसमें एक चट्टान पर विशाल पत्थर को उत्कीर्ण कर हाथी बनाया गया है, जो जीवित हाथी की तरह दौडता हआ प्रतीत होता है। इस हाथी की मूर्ति को रामनाथ सिलावट ने तयार किया।
- वनस्थली विद्यापीठ — 1935 में निवाई में पंडित हीरालाल शास्त्री द्वारा ‘शांता बाई शिक्षा कुटीर’ के रूप में स्थापित । यह आगे चलकर वनस्थली विद्यापीठ के रूप में प्रसिद्ध हुआ।
- हाड़ा रानी की बावड़ी — हाड़ा रानी की टोडारायसिंह में निर्मित हाडा रानी की बावडी जल संरक्षण और स्थापत्य कला का अद्भुत नमूना है। इस बावड़ी पर बनी हुई सीढ़ियाँ आभानेरी की चाँद बावड़ी की तरह सुन्दर व आकर्षक हैं।
महत्त्वपूर्ण तथ्य :
- भंडग जी की गुफा :निवाई व चाँदसेन के पहाड़ों के मध्य भंडग जी की गुफा है। कहा जाता है कि प्राचीन समय में यहाँ भृगु ऋषि ने तपस्या की थी।
- टोंक को राजस्थान का लखनऊ, आदाब का गुलशन, रोमेंटिक कवि अख्तर शीरानी की नगरी, मीठे खरबूजे का चमन, हिन्दु मुस्लिम एकता का मस्कन, नमदों का शहर, नवाबों की नगरी आदि कई नामो से पुकारा जाता है।
- 1817 ई. में अंग्रेज सरकार ने एक संधि के तहत् मराठा सरदार जसवन्त होल्कर से प्राप्त टोंक का क्षेत्र अमीर खाँ पिण्डारी को सौंप दिया जो वस्तुतः उसी के अधिकार में था। तब से टोंक रियासत की स्थापना हुई जो राज्य की एक मात्र मुस्लिम रियासत थी।
- निवाई नाथ सम्प्रदाय का प्रमुख केन्द्र है। यहाँ पहाड़ी पर जलंधरनाथ का प्राचीन स्थान है। जलंधरनाथ जी के स्थान के नीचे पहाड़ी की तलहटी में बालाजी का मंदिर स्थापत्य की दृष्टि से उत्कृष्ट है। निवाई में दामोदर जी का मंदिर और उसके पार्श्व में स्थित कुमुदिनी कुंड रमणीक स्थान है। यहाँ खारी बावड़ी व फूटी बावड़ी मुख्य बावड़ियाँ है।
- चारबेत लोकनाट्य—राजस्थान में चारबेत का एकमात्र केन्द्र टोंक है। इसका वाद्य यंत्र डफ है।
- चारबेत चार प्रकार का होता है—भक्ति, शृंगार, रकी बखानी व गम्माज। चारबेत का प्रवर्तक अब्दुल करीम खां को माना जाता है।
- निवाई में मायला कुंड के निकट 12 खम्भों की कलात्मक छतरी है। इसमें उत्कीर्ण शिलालेख के अनुयार यह कान्हा नरूका की छतरी है।
- रैढ़—इसे प्राचीन भारत का टाटा नगर कहते हैं। यहाँ से एशिया का सबसे बड़ा सिक्कों का भण्डार मिला है। यहाँ से मातृदेवी व गजमुखी यक्ष की मूर्तियां मिली है।
- टोंक का राजस्थान संघ में विलय के समय इसके शासक नवाब मोहम्मद इस्माइल अली खान थे।
- निवाई में स्थित झिलाय वाले बाग में संग्रामसिंह झिलाय की कलात्मक छतरी बनी हुई है।
- दामोदरलाल व्यास राजस्थान के लौह पुरुष व्यास का जन्म टोंक जिले की मालपुरा में हुआ।
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