नागौर जिला दर्शन : नागौर जिले की सम्पूर्ण जानकारी
प्राचीनकाल में अहिछत्रपुर के नाम से विख्यात नागौर जांगलदेश व सपादलक्ष (शाकंभरी) के चौहानों की राजधानी रहा था 1570 ई. में अकबर ने अजमेर जियारत कर सीधे नागौर जाकर अपना दरबार लगाया, जहाँ मारवाड़ के अधिकांश शासकों ने उसकी अधीनता स्वीकार की थी। अत: मारवाड़ की परतंत्रता की कड़ी में नागौर दरबार एक महत्त्वपूर्ण कड़ी था। स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व नागौर जोधपुर रियासत का हिस्सा था। चलो नागौर जिले के बारे में और पढ़ते है :-
- नागौर का क्षेत्रफल : 17718 वर्ग कि.मी है।
- नागौर जिले की मानचित्र स्थिति – 25°25′ से 27°40′ उत्तरी अक्षांश तथा 73°18′ से 75°15′ पूर्वी देशान्तर है।
- इस जिले में कुल वनक्षेत्र – 235.93 वर्ग किलोमीटर है।
- नागौर से बीकानेर, चुरू, सीकर, जयपुर, अजमेर, पाली व जोधपुर की सीमाएँ मिलती हैं।
- यहां जिप्सम बहुतायत से पाया जाता है।
- नागौर जिले के उपनाम → अहिच्छत्रपुर, औजारों की नगरी, राजस्थान की धातु नगरी
- नागौर में खारे पानी की झीलें-डीडवाना व पचपदरा है जिनसे नमक निकाला जाता है। – डीडवाना झील जिले की सबसे बड़ी झील है जिसका पानी खारा है।
नागौर के प्रमुख मेले
- चारभुजानाथ (मीराबाई) का मेला — मेड़ता सिटी
- लक्ष्मीनारायण झूला का मेला — मौलासर
- दधिमति माता का मेला — गोठ मांगलोद
- तारकीन का उर्स — नागौर
- हरिराम जी का मेला — झोरड़ा
नागौर के प्रमुख मंदिर
- दधिमति माता का मंदिर — नागौर की जायल तहसील में गोठ और मांगलोद नामक गाँवों की सीमा पर यह मंदिर दधिमति माता (दाहिमा/दाधीच ब्राह्मणों की आराध्य देवी) के नाम से विख्यात है। यह मंदिर 7वीं से 9वीं शताब्दी पूर्वार्द्ध में निर्मित है जो प्रतिहारकालीन महामारू हिन्दू मंदिर शैली का है.
- चारभुजानाथ, मेड़ता (नागौर) — इस मंदिर की स्थापना राव दूदा ने की। यहाँ मीराबाई, संत तुलसीदास, रैदास आदि की आदमकद प्रतिमाएँ हैं।
- कैवाय माता — नागौर जिले में परबतसर के निकट किणसरिया गाँव में पर्वत शिखर पर बना कैवायमाता का का मंदिर अति प्राचीन है।
- बंशीवाले का मंदिर — बंशीवाले का मंदिर नागौर में स्थित इस मंदिर को मरलीधर का मंदिर भी कहा जाता है।
- पाडामाता का मंदिर –– डीडवाना झील के निकट सरकी माता अथवा पाडामाता का मंदिर है।
- भवांल माता — मेड़ता से 20 किमी. दूर भवांल ग्राम में स्थित। इस शक्तिपीठ में चामुण्डा और महिषमर्दिनी के का मंदिर स्वरूपों की पूजा होती है। यहाँ नवरात्रा की अष्टमी को मेला लगता है।
- गुसाईं मंदिर — गुस्से वाले अवतार-गुसाई जी का यह मंदिर मुंजाला में स्थित है। यहाँ भाद्रपद माह में मेला लगता है।
- ब्रह्माणी माता का मंदिर — नागौर में स्थित ब्रह्माणी माता के इस प्राचीन मंदिर को बरमाया का मंदिर तथा यागिनी का मंदिर कहा जाता है।
- झोरड़ा — झोरड़ा गाँव बाबा हरिराम की जन्मस्थली है। बाबा हरिराम रेगिस्तानी क्षेत्र के सांप-बिच्छुओं द्वारा डसे लोगों का उपचार करते थे। आज भी यहाँ साँप-बिच्छू के डंसे हुए लोगों का उपचार होता है।प्रतिवर्ष भाद्रपद माह की चतुर्थी व पंचमी को गाँव में मेला लगता है।
- खरनाल — यह लोकदेवता तेजाजी की जन्म भूमि है। खरनाल गाँव में वीर तेजाजी का एक छोटा मंदिर बनाहुआ है। खरनाल गाँव से 1/2 किमी दूर तेजाजी की बहन बुगलबाई का मंदिर है।
- वीर तेजाजी का मंदिर — यहाँ लोकदेवता वीर तेजाजी का मंदिर है।
- बड़े पीर की दरगाह, नागौर — यह सूफियों की कादरिया शाखा के जन्मदाता सैय्यद सैफुद्दीन अब्दुल वहाब की दरगाह है।
- सुल्तानुतारकीन की दरगाह — नागौर नगर में ही सूफियों की चिश्तीशाखा के संत काजी हमीदुद्दीन नागौरी सुल्तानुत्तारकीन की दरगाह है, जहाँ अजमेर के बाद सबसे बड़ा उर्स भरता है। काजी हमीदुद्दीन मुहम्मद गौरी के साथ भारत आए थे। सुल्तान तारकीन को संन्यासियों का सुल्तान’ कहा जाता है। इस मस्जिद का निर्माण फैजुल्लाखान के पुत्र बहराम खान की देखरेख में बादशाह मोहम्मद अकबर शाह द्वितीय के समय हआ।
नागौर के पर्यटक एवं दार्शनिक स्थल
- खींवसर किला –– यह अब एक हैरिटेज होटल है। इस किले में मुगल सम्राट औरंगजेब ठहरे थे।
- मेड़ता सिटी — प्राचीन नाम-मेड़न्तक, मेडतापुर व मेदिनीपुर। राव दूदा द्वारा 15वीं सदी में निर्मित। यहाँ मालकोट का दुर्ग है । मीरा बाई का जीवन यहीं बीता था। यहाँ मीरा बाई का मंदिर एवं मीराबाई का महल आदि स्थित है। यहाँ डागोलाई तालाब पर महाराज सिंधिया के फ्रेंच कप्तान डी.बौरबोन की कब्र भी दर्शनीय है।
- बुलन्द दरवाजा — बुलन्द दरवाजा नागौर नगर की पवित्र दरगाह का यह बलन्द दरवाजा न केवल स्थापत्य की बलन्दियों का अहसास कराता है अपितु अपने विराट स्वरूप के कारण दर्शकों को भी अनायास ही आकर्षित करता है
- जैन विश्वभारती लाडनूं (नागौर) — अमूर्तिपूजक जैन परम्परा (जैन श्वेताम्बर तेरापंथी) के युग प्रधान आचार्य श्री तुलसी की प्रेरणा से सन् 1971 में इस आध्यात्म तीर्थ की स्थापना की गई। यह अब एक डीम्ड युनिवर्सिटी का रूप ले चुका है।
- खनासपुरा — खवासपुरा गाँव शेरशाह सूरी के सेनापति खवासखाँ के नाम से प्रसिद्ध है जो राव मालदेव की रूठी राणी का पीछा करते हुए यहाँ ठहरा था। बाद में उसकी वहीं मृत्यु हो गई। उसकी कब्र व महल के -भग्नावशेष आज भी यहाँ है।
- नागौर दुर्ग — यह दुर्ग राजपूत मुगल शैली का सुंदर उदाहरण है।
- लाखोलाव तालाब — मूण्डवा में स्थित तालाब। इसका निर्माण लक्खी बनजारा नामक एक व्यापारी ने करवाया लाखोलाव तालाब के ऊपर ही बने बगीचे में नागा बाबा का मंदिर है जो किसी समय नागा साधुओं की आस्था स्थली थी। इस तालाब पर प्रतिवर्ष नाग पंचमी को विशाल मेले का आयोजन होता है।
- पीपासर — यह जांभोजी की जन्म स्थली व साधना स्थली है। यहाँ जांभोजी का पैनोरमा है
- राव अमरसिंह की छतरी — नागौर में झड़ा लालाब में 16 कलात्मक खम्भों की वीरवर राव अमरसिंह राठौड़ की छतरी स्थित है। राव अमर सिंह मतीरे की राड’ के कारण चर्चित रहा।
- मालकोट — भालकोट मेड़ता शहर के दक्षिणी छोर पर स्थित है। मालकोट दुर्ग जोधपुर नरेश मालदेव ने बनवाया था। राव मालदेव ने इसी दुर्ग में अकबर के दूतों-अबुल फजल व फैजी से वार्ता की थी।
महत्वपूर्ण तथ्य :-
- रोटू — नागौर जिले का आखेट निषिद्य क्षेत्र जहाँ हजारों की संख्या में काले हिरण व चिंकारा विचरण करते है।
- पंचायती राज व्यवस्था का प्रारम्भ 2 अक्टूबर, 1959 को नागौर में हुआ।
- राजस्थान में सबसे अच्छी किस्म का संगमरमर सफेद संगमरमर—मकराना (नागौर) में मिलता है, जिससे आगरा का ताजमहल व कोलकाता का विक्टोरिया मेमोरियल बना हुआ है।
- कुचामन में मारवाड़ राज्य की टकसाल थी जिसमें ढले हुए सिक्के कुचामनी सिके कहलाते थे।
- खींवसर (नागौर) में राज्य का दूसरा परमाणु बिजलीघर बनाया जा रहा है।
- परबतसर से मात्र तीन किमी. की दूरी पर गिंगोली का मैदान है जहाँ जोधपुर व जयपुर राज्यों की सेनाओं के बीच घमासान युद्ध लड़ा गया था।
- जायल तहसील के गौराऊ तथा परबतसर तहसील के कुराड़ा गाँव में स्वतंत्रता से पूर्व ताम्र उपकरण मिले है।
- नावां शहर में एमरी स्टोन की चकियाँ बनती हैं।
- अकबर के नौ रत्न कहे जाने वाले दरबारी-बीरबल, अबुल फजल तथा फैजी नागौर के थे।महान कवि वृन्द भी नागौर के थे
- अलौह धातुओं में काँसे और पीतल के नागौरी शिल्प के बर्तन प्रसिद्ध है।
- भारत सरकार ने संत शिरोमणि मीरांबाई तथा समाजसेवी व किसान नेता बलदेवराम मिर्धा पर डाक टिकट जारी किया।
- मारोठ व कुचामन का गोल्डन पेंटिंग का काम पूरे हिन्दुस्तान में प्रसिद्ध है।
- ग्राम टांकला की दरियाँ तथा बडू की जूतियाँ प्रसिद्ध हैं।
- लोहारपुरा (नागौर) में लोहे के हस्त औजार बनते है।
- मारवाड़-मूण्डवा सावन भादों की गोठ के लिए प्रसिद्ध
- ताउसर, नागौर की मेथी प्रसिद्ध है।
- नागौर के मालपुए और फीणी,मुंडवा के नमकीन सेब (भुजिया) तथा कुचामन के गोंद के पापड़ प्रसिद्ध है।
- सफेद सीमेंट—गोटन (नागौर) यहाँ पर राज्य की प्रथम सीमेंट फैक्ट्री (जे.के. व्हाइट सीमेंट) 1984 में स्थापित की गई।
- नागौर में प्रवेश द्वार : नागौर में प्रवेश के लिए 6 विशाल द्वार है। ये द्वार माही, अजमेर, दिल्ली, कुम्हारी, नकास व नया दरवाजा के नाम से जाने जाते हैं। नकास दरवाजा के पास सड़ा तालाब, माही दरवाजा के पास बरल सागर जया दरवाजा के पास प्रताप सागर, दिल्ली दरवाजा के पास शक्कर तालाब, अजमेर दरवाजा के पास समस तालाब व कुम्हाही दरवाजा के पास लाल सागर नामक तालाव है।नगर के मध्य में गिनाणी तालाब है।
- डीडवाना को ‘शेखावाटी का सिंहद्वार’ कहा जाता है, क्योंकि यह मारवाड़ का आखिरी नगर है और इसके बाद से शेखावाटी की सीमा प्रारम्भ होती है।
- मकराना : यह कस्बा संगमरमर की खानों के लिए जाना जाता है।
- सेवज: वर्षा का पानी इकट्ठा करके उसमें गेहूँ, चने, सरसों आदि बोई जाती थी उसे ‘सेवज’ कहते है।
- दुगणी, फदिया, पिरोजी : मध्यकालीन मारवाड़ में प्रचलित सिक्के।
- पिलाण : ऊँट पर बैठने के लिए रखा जाने वाला आसन।
- नागौर नस्ल के बैलों की मूल उत्पत्ति श्वालक क्षेत्र से मानी जाती है।
- बुटाटी : यह गाँव लोक संत चतुर्दस जी का जन्म स्थान है। लकवा पीड़ित मरीजों के लिए यह स्थान आस्था का केन्द्र है।
- राज्य में सर्वाधिक पशु मेलों का आयोजन नागौर जिले में होता है।
- राजस्थान में खारे पानी की सर्वाधिक झीले नागौर में है तथा राज्य में सर्वाधिक फ्लोराइड प्रभावित क्षेत्र भी नागौर ही है।
- नागौर के कुचामन का कुचामनी ख्याल प्रसिद्ध है।
- नागौर जिले का वरुण गाँव बकरियाँ के लिए जाना जता है।
- मूँडवा गाँव, नागौर में अबुंजा सीमेंट कम्पनी द्वारा सीमेंट प्लांट लगाने की घोषणा।
- देश में पहली रेल बस सेवा का आरम्भ नागौर में मेड़ता से मेड़ता रोड की बीच 1994 में किया गया।
- अन्य स्थल — मीरा बाई का पैनोरमा, शाह जामा मस्जिद, फलौदी माता का मंदिर, ताऊसर गाँव में सिंधिया जनरल अप्पाजी की कलात्मक छतरी, बड़ली में नाथों की छतरी, चुंटीसरा में सांईजी का टांका आदि दर्शनीय हैं।
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