जालौर जिला दर्शन : Jalor jila darshan .
- सुवर्ण नगरी के नाम से प्रसिद्ध जालौर को पहले जबालिपुर व जालहुर कहा जाता था। यह सूकड़ी नदी के दक्षिण में स्थित है।
- जालौर को महर्षि जाबालि की तपोभूमि भी कहा जाता है।
- जालौर जिले की आकृति एक वृहद् मछली के समान है। यहाँ नेहड़ क्षेत्र की समुद्री दलदल, सांचौर तथा सायला क्षेत्र के बालुका स्तूप, जसवंतपुरा तथा जालोर क्षेत्र के सुगन्धाद्रि स्वर्णगिरी पर्वत, जालोर का कश्मीर कहा जाने वाला रानीवाड़ा क्षेत्र का बड़गाँव आदि स्थित है।
- इतिहासकार डॉ. दशरथ शर्मा के अनुसार प्रतिहार नरेश नागभट्ट प्रथम ने जालोर को अपनी राजधानी बनाया था।
- खगोल शास्त्र के प्रकाण्ड विद्वान वागत इसी जिले की विभूति थे, जिन्होंने ‘ब्रह्मस्फुट सिद्धान्त’ की रचना की थी।
- चारणों की खिड़िया शाखा के कवि चानण का जन्म सांचौर तहसील के बोर गाँव में हुआ था।
- जालौर का क्षेत्रफल : 10640 वर्ग कि.मी. है।
- जालौर जिले में कुल वनक्षेत्र – 545.68 वर्ग किलोमीटर है।
- जालोर जिले के तीन प्रमुख नगर-जालोर, भीनमाल व सांचौर ऐतिहासिक है।
- लूनी, बांडी, जवाई व सूकड़ी यहाँ की प्रमुख नदियाँ है।
- जालोर का ढोल नृत्य प्रसिद्ध है।
- जालोर जिले में ‘ग्रेनाइट’ बहुतायत से पाया जाता है। अत: जालोर को ‘ग्रेनाइट शहर’ भी कहा जाता है।
- जालोर तहसील में ग्रेनाइट चट्टानों से बनी निम्न दो महत्त्वपूर्ण पहाड़ियाँ है 1.जालोर पहाड़ी 2. इसरना तथा राजनवाड़ी पहाड़ियाँ।
- आहोर तहसील में भाद्राजुन की पहाड़ियाँ व किशनगढ़ की पहाड़ियाँ मालानी ज्वालामुखीय (रायोलाइट) की बनी है।
- भीनमाल तहसील के दक्षिण पूर्वी भाग में जिले की सबसे ऊँची पहाड़ियाँ-जसवंतपुरा की पहाड़ियाँ हैं। सुंधा चोटी इस जिले की सबसे ऊँची पर्वत चोटी है जिसे महाराजा जसवंत सिंह ने ‘मारवाड का दूसरा आबू’ घोषित किया था और यहाँ अपने ग्रीष्मकालीन प्रवास के लिए विश्राम स्थल बनवाया था।
जालौर के प्रमुख मेले
- सेवाड़िया पशु मेला —- रानीवाड़ा
- बाबा रघुनाथपुरी पशु मेला साँचोर —- साँचोर
- आशापुरी माताजी का मेला —- मोदरा
जालौर के प्रमुख मंदिर
- सिरे मंदिर — जालोर में कन्यागिरि पर्वत पर यह स्थान योगीराज जालंधरनाथ जी की सिद्ध तपोभूमि है, जिनके नाम पर जालोर को जालंधर कहा जाता था। यहाँ राजा रतनसिंह ने एक शिव मंदिर की स्थापना करवाई थी। महाराजा मानसिंह ने आयस देवनाथ की कृपा से इस मंदिर का पुननिर्माण करवाया।
- महोदरी(आशापुरी) माता मंदिर — मोदरां जालोर के सोनगरा चौहान शासकों की कुलदेवी थी। इस मंदिर में जो मूर्ति स्थापित है। वह लगभग एक हजार साल पुरानी है। नवरात्रा में यहाँ विशाल मेले का आयोजन होता है।
- श्री लक्ष्मीवल्लभ पार्श्वनाथ — भीनमाल में स्थापित यह देश का सबसे बड़ा जैन मंदिर है। इस जिनालय के प्रेरणास्रोत जैनाचार्य हेमेन्द्र सूरिश्वर जी महाराज के आज्ञाकारी मुनिप्रवर श्री ऋषभचन्द्र विजय जी महाराज हैं। 2 मई, 1996 को इस मंदिर का शिलान्यास किया गया। यह मंदिर सर्वतोभद्र श्रीयंत्र रेखा पर बनाया गया है, जिनके दर्शनमात्र से लक्ष्मी की प्राप्ति हो सकती है। यह किसी एक परिवार द्वारा बनाया जाने वाला देश का पहला विशाल तीर्थ है।
- मलिक शाह पीर की दरगाह — जालोर दुर्ग में स्थित इस दरगाह में भरने वाला उर्स धार्मिक एकता एवं हिन्दु मुस्लिम समन्वय का प्रतीक है। सेवाड़ा के पातालेश्वर जालोर के सेवाड़ा ग्राम में यह शिव मंदिर स्थित है।
- भीनमाल का जगत्स्वामी सूर्य मन्दिर — इतिहासकार जी.एच. ओझा के अनुसार यह राजपूताने के प्राचीन सूर्य मंदिरों में से एक है जो स्थानीय बोलचाल में जगमडेरा कहलाता था।
- सुण्डा माता मंदिर — दांतलावास गाँव (रानीवाड़ा, जालोर) में यह मंदिर सुण्डा पर्वत पर 1220 मीटर की ऊँचाई पर एक प्राचीन गुफा में स्थित है। यहाँ माँ अहेटेश्वरी देवी का मंदिर है जिसे चामुण्डा माता के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर में चामुण्डा माँ के सिर्फ सिर की पूजा की जाती है। यह श्रीमाली ब्राह्मणों की कुलदेवी है। यहाँ पर प्रति माह पूर्णिमा को तथा भाद्र और वैशाख शुक्ल में तेरस से पूर्णिमा तक विशाल मेला भरता है। होली पर यहाँ ‘भाटा गैर नृत्य’ का आयोजन किया जाता है। सुण्डा पर्वत पर राजस्थान का पहला रोपवे 20 दिसम्बर, 2006 को प्रारंभ हुआ था।
- नन्दीश्वर दीप तीर्थ — यह मंदिर भीनमाल तहसील, जालोर में स्थित है। यहाँ 52 जिनालय है। मंदिर में एक कीर्ति स्तम्भ भी है।
- मांडोली तीर्थ, मांडोली जालौर — यह जैन संत गुरुवर विजय शांति सूरीश्वर महाराज जी को समर्पित जैन मंदिर है। यहाँ उनका श्वत जालौर स्फटिक से निर्मित प्रतिमा है।
- वीर फता जी का मंदिर — साथू गाँव में लोकदेवता वीर फत्ताजी का मंदिर है। यहाँ भाद्र शुक्ला नवमी को मेला भरता है।
- जगनाथ महादेव का मंदिर — सोनगरा चौहानों के संस्थापक कीर्तिपाल की पत्री रुदल देवी द्वारा बनवाया गया शिवालय।
जालौर के दार्शनिक स्थल
- जालोर दुर्ग (सुवर्णगिरी दुर्ग) — मारवाड़ में सूकड़ी नदी के किनारे सुवर्णगिरी पहाड़ी पर स्थित इस दुर्ग का निर्माण प्रतिहार नरेश नागभट्ट प्रथम ने कराया था। इसके साथ चौहान (खींची) शासक वीर कान्हड़दे के उद्भट पराक्रम का आख्यान जुड़ा हुआ है।
- भीनमाल — भीनमाल के श्रीमाल, भिल्लामाल, पुष्पमाल, आलमाल, रत्नमाल, वीर नगर आदि नामों का उल्लेख मिलता है। चीनी यात्री ह्वेनसांग भी यहाँ आया था। उसने इसे पीलोमोलो नाम दिया था। ‘हरमेखला’ नामक आयुर्वेद के ग्रंथकर्ता श्रीमंहुर’ भीनमाल के ही निवासी थे।
- सांचौर — इस क्षेत्र में राजस्थान की पाँच नदियाँ बहती है। अतः इसे राजस्थान का पंजाब कहते हैं।
- बाँकली बाँध — जालोर जिले की आहोर तहसील में सूकड़ी नदी पर निर्मित यह बाँध इस जिले का सबसे बड़ा व सबसेपुराना सिंचाई बाँध है । इसका निर्माण 1899-1905 के बीच तत्कालीन मारवाड़ रियासत द्वारा अकाल राहत कार्यों के तहत करवाया गया था।
- तोपखाना — जालोर में जोधपुर राज्य की तोपें रखने का स्थान ‘तोपखाना’ के नाम से प्रसिद्ध है।
- बड़गाँव — जालोर जिले की रानीवाड़ा पंचायत समिति का बड़गाँव क्षेत्र ‘जालोर का कश्मीर’ कहलाता है। यहाँ सुकाल नदी बहती है।
- कोटकास्तां दर्ग — यह जालौर जिले के भीनमाल कस्बे के पास स्थित है। इसे नाथों का दुर्ग भी कहते हैं।
जालौर के महत्वपूर्ण तथ्य
- जालौर के उपनाम जलालाबाद , ग्रेनाइट सिटी ,जबालीपुर , सुवर्ण गिरी आदि है।
- राजस्थान में जीरे का सर्वाधिक उत्पादक जालोर जिले में होता है.
- राजस्थान का पहला गोमूत्र बैंक सांचौर (जालौर) में खोला गया था।
- राजस्थान के जालौर जिले की आकृति व्हेल मछली के समान है।
- संस्कृत साहित्य के प्रकाण्ड विद्वान ‘शिशुपालवध’ के रचयिता महाकवि माघ भीनमाल (जालौर) निवासी थे।
- जालौर का होली के अवसर पर लुंबर नृत्य प्रसिद्ध है।
- ‘स्फूट ब्रह्मा सिद्धान्त’ के रचयिता, प्रसिद्ध ज्योतिष ‘ब्रह्मगुप्त’ भी भीनमाल (जालौर) के थे।
- राजस्थान का प्रथम रोप-वे सुंधा माताजी मंदिर, जालौर में।
- गुलाबी रंग का संगमरमर एवं ग्रेनाइट जालौर जिले का प्रसिद्ध है।
- चीनी यात्री ह्वेनसांग ने 7 वीं सदी में भीनमाल की यात्रा की थी। ह्वेन सांग ने अपने यात्रा वृतांत में भीनमाल का गुर्ज्जरत्रा देश की राजधानी के रूप में उल्लेख किया है।
- राज्य की सबसे बड़ी दूध डेयरी-रानीवाड़ा जालौर में स्थित है।
- जालौर में बेदाना अनार की खेती के लिए प्रसिद्ध है ।
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