राजस्थान जिला दर्शन (बाँसवाड़ा) : बाँसवाड़ा जिला दर्शन : Rajasthan jila darshan

By | June 6, 2021
Banswara jila darshan

बाँसवाड़ा जिला दर्शन : बाँसवाड़ा जिले की सम्पूर्ण जानकारी 

बाँसवाड़ा राज्य की नींव महारावल उदयसिंह के पुत्र महारावल जगमालसिंह ने डाली थी। इसका नाम इस क्षेत्र में प्रचुरता से पाये जाने वाले पेड़ बांस (बानी) व बांसिया भील द्वारा बसाये जाने के कारण पड़ा है। बाँसवाड़ा राज्य वागड़ (प्राचीन दूंगरपुर राज्य) का पूर्वी हिस्सा है। इसका अर्थ ‘बाँस की झाड़ी से रक्षित स्थान है। स्कंध पुराण में इसे कुमारिका खण्ड कहा गया है। कर्क रेखा इसके मध्य में से गुजरने के कारण इसका अधिकांश भाग उष्ण कटिबंध में आता है । बाँसवाड़ा व दूंगरपुर दोनों पूर्व में वागड़ राज्य के अंग थे। प्राचीन समय में यह वाग्वर प्रदेश (या पुष्प प्रदेश) के नाम से जाना जाता था। यह जिला जनजाति बहुल है। यहाँ हाल ही में प्राचीन अमरावती नगरी के भग्नावशेष मिले हैं।

  • बांसवाड़ा का क्षेत्रफल : 5037 वर्ग किमी है।
  • नगरीय क्षेत्रफल → 22 वर्गकिलोमीटर
  • ग्रामीण क्षेत्रफल → 5015 वर्गकिलोमीटर
  • यह राजस्थान का सबसे दक्षिणी जिला है।
  • राजस्थान का सबसे दक्षिण में स्थित बोरकुण्डा गाँव, कुशलगढ़ तहसील में है। कर्क रेखा बाँसवाड़ा के कुशलगढ़ के बीच से होकर गुजरती है।
  • बाँसवाड़ा के उत्तर में प्रतापगढ़, पश्चिम में डूंगरपुर, पूर्व में मध्यप्रदेश के रतलाम व झाबुआ जिले व दक्षिण में गुजरात का महीसागर व दोहाद जिला है। 
  • बाँसवाड़ा की सीमा मध्यप्रदेश व गुजरात दो राज्यों को स्पर्श करती है।
  • बाँसवाड़ा में सागवान के वृक्ष अत्यधिक मिलते हैं अत: बाँसवाड़ा को सागवान का उद्यान भी कहते हैं।
  • माही, अनास, हारन, चाप व एराव इस जिले की मुख्य नदियाँ हैं।
  • बांसवाड़ा के उपनाम → आदिवासियों का देश, सौ द्वीपों का शहर, बागड़ प्रदेश
  • यहाँ की प्रधान भाषा वागड़ी है जो गुजरात से अधिक संबंध रखती है। कुछ लोग रांगड़ी भी बोलते हैं।
  • बाँसवाड़ा रियासत का राजस्थान में एकीकरण द्वितीय चरण (25 मार्च 1948 ) में हुआ।   
  • बाँसवाड़ा के चन्द्रवीर सिंह ने विलय-पत्र (एकीकरण हेतु) पर हस्ताक्षर करते हुए कहा कि “मैं अपने डेथ वारंट पर हस्ताक्षर कर रहा हूँ।”

बाँसवाड़ा के प्रमुख मेले व त्यौहार

  • कल्लाजी का मेला —- गोपीनाथ का गढ़ा 
  • अन्देश्वर  —-  अन्देश्व
  • गोपेश्वर  —-  घाटोल के निकट 
  •  घोटिया अम्बा मेला  —-  घोटिया (बारीगामा)  
  • मानगढ़ धाम मेला  —-  आनन्दपुरी के निकट 

बाँसवाड़ा के प्रमुख मंदिर

  • आदेश्वर पाशर्वनाथ जी — कुशलगढ़ तहसील में एक छोटी पहाड़ी पर स्थित प्रसिद्ध जैन मंदिर।
  • घोटिया अम्बा — यहाँ अम्बा माता धाम के अलावा घोटेश्वर महादेव, पाण्डव कुंड और केलापानी पवित्र तीर्थ हैं। माना जाता है कि पाण्डवों ने वनवास का कुछ समय यहाँ व्यतीत किया था। यहाँ पाँचों पाण्डवों तथा कुंती व द्रौपदी की मूर्तियाँ स्थापित हैं। घोटिया अंबा से कुछ किमी. दूर भीमकुण्ड है, जो सुरंग द्वारा घोटिया अंबा से जुड़ा है। भीमकुण्ड से लगभग 7 किमी. दूर ‘रामकुण्ड’ है जो चारों ओर से सुरम्य पहाड़ियों से घिरा हुआ है। इसे ‘फातीखान’ भी कहते हैं। यह पूरे वर्षभर बहुत ठंडे रहने वाले पानी का एक कुंड है।
  • विट्ठल देव का मंदिर — यह भगवान कृष्ण का मंदिर है।
  • छूणी के रणछोड़ रायजी — यह महाभारत कालीन तीर्थ माना जाता है। यह उदयपुर मार्ग पर गनोड़ा के निकट स्थित है। यहाँ भगवान रणछोड़राय की प्रतिमा है। इन्हें हर मनोकामना पूर्ण करने वाला व फसलों के रक्षक देव के रूप में पूजा जाता है। प्रतिवर्ष फाल्गुन शुक्ला एकादशी (आँवला एकादशी) को यहाँ मेला भरता है।
  • छिंछ(बाँसवाड़ा) — यहाँ विक्रम की 12वीं शती का ब्रह्माजी का मंदिर है जिसमें ब्रह्माजी की आदमकद चतुर्मुखी मूर्ति विराजमान हैं तथा आंबलिया तालाब की पाल पर छिंछा देवी का प्राचीन मंदिर है। महारावल उग्रसेन के पोते और उदयभाण के बेटे महारावल समरसिंह के राज्य काल में सोलंकी नानक के बेटे देवीदास ने भगवती छीछा का मंदिर बनवाया। ब्रह्मा की मूर्ति की स्थापना बाँसवाड़ा रियासत के संस्थापक महारावल जगमाल सिंह ने की थी। यहाँ 1495 ई. का एक स्तम्भ लेख है जिससे ज्ञात होता है कि कल्ला के बेटे देवदत्त ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया। ब्रह्मा मंदिर से सटा हुआ एक तालाब है, जिस पर एक घाट बना हुआ है, जो ब्रह्मा का घाट कहलाता है।
  • मंडलीश्वर — पाणाहेड़ा में नागेला तालाब की पाल पर स्थित शिवालय जिसको वागड़ के परमार राजा मंडलीक ने शिवालय 1059 में बनवाया था।
  • आथूणा के मंदिर — ये मंदिर वागड़ के परमार राजाओं (11वीं-12वीं सदी) द्वारा निर्मित हैं। उस समय आथूणा परमारों की राजधानी थी। प्राचीन ग्रंथों में इसका नाम उत्थूनक मिलता है। आथूर्णा में प्राचीनतम मंदिर गंगेला (गमेला) तालाब के पास स्थित मण्डलेश्वर महादेव मंदिर है। यह मंदिर सप्तायतन शैली में निर्मित है व पूर्वाभिमुखी है। मंदिर में स्थित शिलालेख से ज्ञात होता है कि इसे वागड़ के परमार शासक मंडलीक के पुत्र चामुण्डाराज ने अपने पिता की स्मृति में वि.सं. 1136 (31 जनवरी, 1080) में बनवाया था। यह शिव-पंचायतन मंदिर था। आथूणा में भगवान शिव को समर्पित मंदिरों की अधिकता है। यहाँ एक मंदिर समूह हनुमानगढ़ी भी है, इस समूह में एक हनुमान का, एक वराह का, एक विष्णु का और तीन शिव के मंदिर है। हनुमानगढ़ी में नीलकंठ का मंदिर सबसे बड़ा मंदिर है।
  • लक्ष्मीनारायण का मंदिर — यह मंदिर महारावल पृथ्वीसिंह की राठौड़ राणी अनोपकुँवरी ने 1799 में बनवाया था।
  • त्रिपुर सुंदरी मंदिर — तलवाड़ा (बाँसवाड़ा) से पाँच किमी. दूर स्थित त्रिपुर -सुंदरी (उमराई गाँव में) का मंदिर स्थानीय लोगों में ‘तुरताई माता’ के नाम से भी जाना जाता है। यहाँ काले पत्थर की देवी की अष्टादश भुजा की मूर्ति है । मूर्ति की पीठिका पर मध्य में श्रीयंत्र अंकित है। मंदिर के त्रिपुर नाम का संदर्भ प्राचीन काल के तीन पुरों से था शक्तिपुर, शिवपुर और विष्णुपुर में स्थित होने के कारण इसका नाम त्रिपुरसुन्दरी पड़ा। नवरात्र पर यहाँ उत्सव व मेले का आयोजन किया जाता है। यह पांचालों की कुलदेवी है
  • भीलेश्वर महादेव –– महारावल जगमाल ने यह मंदिर बनवाया।
  • सूर्यमंदिर — तलवाड़ा में ही एक सूर्य मंदिर है, जो 11वीं सदी का बना हुआ है। इसी में श्वेत पत्थर से निर्मित नवग्रहों की मूर्तियाँ स्थापित हैं।
  • नन्दिनी माता तीर्थ –– बड़ोदिया नामक कस्बे के निकट विशाल पहाड़ी की चोटी पर नन्दिनी माता का प्राचीन मंदिर स्थित है। यहाँ श्वेत प्रस्तर से निर्मित अष्टभुजा देवी की प्रतिमा है। पहाड़ पर दर्शनार्थियों द्वारा पत्थर के छोटे-छाट घरोदें बनाने की परम्परा है। पौष पूर्णिमा को यहाँ भव्य मेला भरता है।

बाँसवाड़ा की प्रमुख नदियाँ

  • माही नदी — उद्गम-मध्यप्रदेश में विन्ध्याचल की महू पहाड़ियाँ। यह बाँसवाड़ा के खांदू ग्राम से राजस्थान में प्रवेश करती है। बाँसवाड़ा के बोरखेड़ा में इस नदी पर माही बजाज सागर बाँध स्थित है। यह राजस्थान का सबसे लम्बा बांध है (3109 मीटर) । इस नदी को बागड़ की स्वर्ण रेखा, कांठल की गंगा आदि उपनामों से जाना जाता है। माही नदी राजस्थान की एकमात्र ऐसी नदी है जो राजस्थान में दक्षिण से प्रवेश करती है तथा वापस दक्षिण में निकलती है। यह नदी कर्क रेखा को 2 बार काटती है। माही नदी उल्टे U, शिवलिंग तथा A की आकृति बनाती है। यह नदी बांसवाड़ा व डूंगरपुर के बीच सीमा भी बनाती है।
  • अन्य जलाशय — आनन्द सागर, कागदी पिकअप, डाईलाब झील।
  • बाँसवाड़ा में सागवान के वृक्ष अत्यधिक मिलते हैं अत: बाँसवाड़ा को सागवान का उद्यान भी कहते हैं।

बाँसवाड़ा के प्रमुख पर्यटन व दर्शनीय स्थल

  • अब्दुल्ला पीर — यह बोहरा सम्प्रदाय के संत अब्दुल रसूल ( अब्दुल्ला पीर) का मजार है। यह भगवानपुरा में स्थित है।
  • माही बाँध — माही नदी पर निर्मित माही बजाज सागर बाँध, जिसने इस क्षेत्र का कायापलट कर दिया
  • केलापानी — महाभारतकालीन पाण्डवों के बनवास काल की शरणस्थली।
  • बाई तालाब (आनंद सागर) — बांसवाड़ा में तेजपुर गाव के पास यह तालाब महारावल जगमाल की ईडरवाली राणी लाछ कुँवरी (लास बाई) ने बनवाया था। उसकी पाल पर एक छोटा महल भी बना हुआ है। इस झील के निकट बांसवाड़ा राज्य के शासकों की छतरियाँ भी हैं।
  • वागड़ के कल्प वृक्ष — बांसवाड़ा-रतलाम मार्ग पर बाई तालाब (आनन्द सागर) क्षेत्र में स्थित एक प्राचीन उद्यान में दो वृक्ष कल्प वृक्ष स्थित है जिन्हें कल्प वृक्ष कहा जाता है।
  • आथूणा का दीप स्तम्भ — बाँसवाड़ा मुख्यालय से करीब 60 किमी दूर आथूणा में यह कलात्मक दीप स्तम्भ स्थित है।
  • तलवाड़ा — प्राचीन काल में यहाँ एक वैभवशाली नगर था। शिलालेखों में इसका नाम ‘तलपाटक’ मिलता है,जिसका अपभ्रंश तलवाड़ा है। यहाँ गोगरेश्वर (गोकर्णेश्वर) महादेव, सामेश्वर महादेव, भगवान आमलिया पिलागणेश मंदिर, महालक्ष्मी मंदिर व द्वारकाधीश के मंदिरों के अतिरिक्त संभवनाथ का विशाल जैन मंदिर है।
  • नृपति निवास व सरिता निवास — महारावल पृथ्वी सिंह ने राजधानी बाँसवाड़ा में कागदी नदी के तट पर नृपति निवास व विट्ठलदेव गाँव में सरिता निवास नामक रमणीय महल बनवाए।
  • राजमंदिर — इसे सिटी पैलेस भी कहा जाता है। यह शाही निवास है जो एक पहाड़ी पर बना हुआ है।

बाँसवाड़ा के चर्चित व्यक्ति

  • गोविन्द गुरु — आदिवासियों में स्वतन्त्रता की भावना जागत करने वाले स्वतन्त्रता सेनानी। इन्होंने 1883 ई. में सम्प सभा की स्थापना सिरोही में की व मानगढ़ को अपनी कर्मस्थली बनाया।
  • यशोदा देवी — राज्य की प्रथम महिला विधायक 1953 में बाँसवाड़ा विधानसभा क्षेत्र से उपचुनाव में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी से चुनी गई।
  • हरिदेव जोशी — खाटू ग्राम में जन्मे, राजस्थान के पूर्व मख्यमंत्री एक मात्र ऐसे विधायक जो प्रथम चुनाव से लेकर 10वीं विधानसभा तक निरन्तर विजयी हुए। इन्होंने जनवरी 1987 में संभागीय व्यवस्था पुनः शुरु की।
  • धूलचंद डामोर — राजस्थान के प्रसिद्ध तीरंदाज।

महत्वपूर्ण तथ्य :-

  • भीलों द्वारा बोली जाने वाली बोली-वागड़ी/भीली।
  • हलमा-बाँसवाड़ा में सामुदायिक सहयोग से गृह निर्माण की सांस्कृतिक परम्परा ‘हलमा’ कहलाती है।
  • कुक्कुट पालन हेतु कड़कनाथ योजना बाँसवाड़ा में शुरु की गई।
  • बाँसवाड़ा में कोई भी वन्य जीव अभयारण्य नहीं है।
  • बाँसवाड़ा की वालरा/झूमिंग/स्थानान्तरित कृषि अर्थात् जंगलों को काटकर की गई खेती प्रचलित है।
  • राज्य की सबसे बड़ी जल विद्युत परियोजना बाँसवाड़ा के बोरखेड़ा में माही बजाज सागर बाँध पर है।
  • छेड़ा फाड़ना-भील समाज में पत्नी को त्यागने की प्रथा।
  • बाँसवाड़ा जिले में ईसाई धर्म के व्यक्तियों की सर्वाधिक जनसंख्या निवास करती है।
  • पशुपालन विभाग ने जनजातीय क्षेत्रीय विकास विभाग की सहायता से बाँसवाड़ा में ‘बतक चूजा केन्द्र’ उत्पादन की स्थापना की थी।
  • मक्के का सर्वाधिक उपज देने वाली किस्म ‘माही कंचन’ बाँसवाड़ा के कृषि अनुसंधान संस्थान ने विकसित की है।
  • मुख्यमंत्री B.P.L. आवास योजना की शुरूआत 3 जून, 2011 को बाँसवाडा में शुरू की गई।

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