राजस्थान के लोक गीत : (Rajasthan ke Lok Geet)

By | May 8, 2021
Rajasthan ke Lok Geet

(राजस्थान के लोक गीत)

राजस्थान के विशेष जनसमुदाय द्वारा गाए जाने वाले परम्परागत गीत ही लोकगीत हैं । लोक गीत लोक समुदाय की धरोहर है। ये दश की संस्कृति के रक्षक हैं ।इन गीतों के साथ हमारा अटूट संबंध है। यह लोक गीत सब लोगो के हृदय को छूने वाले गीत है। चलो आज इन लोक गीतों के बारे में पढ़ते है :-


  • गोरबंद — गोरबंद ऊँट के गले का आभूषण होता है, जिस पर राजस्थान के ग्रामीण क्षेत्रों-विशेषतः मरुस्थलीय व शेखावाटी क्षेत्रों में लोकप्रिय ‘गोरबंद’ गीत प्रचलित है, जिसके बोल हैं :- “म्हारो गोरबंद नखरालौ।”
  • मूमल — जैसलमेर में गाया जाने वाला श्रंगारिक लोकगीत, जिसमें मूमल का नखशिख वर्णन किया गया है। यह गीत ऐतिहासिक प्रेमाख्यान है। मूमल लोद्रवा (जैसलमेर) की राजकुमारी थी। बोल हैं:-“म्हारी बरसाले री मूमल, हालैनी ऐ आलीजे रे देख।
  • ढालामारु — यह सिरोही का लोकगीत है। इसे ढाढी गाते हैं। इसमें ढोलामारु की प्रेमकथा का वर्णन है।
  • कुरजां — राजस्थानी लोकजीवन विरहणी द्वारा अपने प्रियतम को संदेश भिजवाने के लिए कुरजा पक्षी को माध्यम बनाकर यह गीत गाया जाता है :- “कूजाँ ए म्हारौ भँवर मिलाद्यो ए।”
  • काजलियो — भारतीय संस्कृति में काजल सोलह शृंगारों में से एक है। काजलियो’ एक शृंगारिक गीत है, जो विशेषकर होली के अवसर पर चंग पर गाया-बजाया जाता है।
  • ओल्यूँ — ओल्यूँ किसी की याद में गाई जाती है, जैसे बेटी की विदाई पर उसके घर की स्त्रियाँ इसे गाती हैं। बोल हैं:-“कँवर बाई री ओल्यूँ आवै ओ राज।”
  • तेजा गीत — ‘ किसानों का यह प्रेरक गीत है, जो खेती शुरु करते समय तेजाजी की भक्ति में गाया जाता है।
  • पणिहारी पानी भरने वाली स्त्री को पणिहारी कहते हैं । यह राजस्थान का प्रसिद्ध लोकगीत है, जिसमें राजस्थानी स्त्री का पतिव्रत धर्म पर अटल रहना बताया गया है।
  • कामण — राजस्थान के कई क्षेत्रों में वर को जादू-टोने से बचाने हेतु गाए जाने वाले गीत ‘कामण’ कहलाते हैं।
  • घूमर — राजस्थान के प्रसिद्ध लोकनृत्य घूमर के साथ गाया जाने वाला गीत है। यह गणगौर के त्यौहार एवं विशेष पर्वो तथा उत्सवों पर मुख्य रूप से गाया जाता है, जिसके बोल हैं:- “म्हारी घूमर छै नखराली ए माँ, घूमर रमवा म्हें जास्याँ।”
  • रातीजगा — विवाह, पुत्र जन्मोत्सव, मुंडन आदि शुभ अवसरों पर अथवा मनौती मनाने पर रात भर जाग कर गाए जाने वाले किसी देवता के गीत ‘रातीजगा’ कहलाते हैं।
  • हिचकी — ऐसी धारणा है कि किसी के द्वारा याद किए जाने पर हिचकी आती है। निम्न हिचकी गीत अलवर-मेवात का प्रसिद्ध गीत है :- “म्हारा पियाजी बुलाई म्हानै आई हिचकी।”
  • कांगसियो — कांगसियो कंघे को कहते हैं। इस पर प्रचलित लोकगीत ‘कांगसियो’ कहलाते हैं:- “म्हारै छैल भँवर रो कांगसियो पणिहारियाँ ले गई रे।”
  • पावणा — नए दामाद के ससुराल में आने पर स्त्रियों द्वारा पावणा’ गीत गाए जाते हैं। ये गीत भोजन कराते समय व उसके बाद गाए जाते हैं।
  • दुपट्टा — शादी के अवसर पर दूल्हे की सालियों द्वारा गाए जाने वाला गीत।
  • पपैयो — पपीहा पक्षी पर राज्य के कई भागों में पपैयो’ गीत गाया जाता है। इसमें प्रेयसी अपने प्रियतम से उपवन मिलने की प्रार्थना करती है। यह दाम्पत्य प्रेम के आदर्श का परिचायक है।
  • झोरावा — जैसलमेर जिले में पति के परदेस जाने पर उसके वियोग में गाए जाने वाले गीत ‘झोरावा’ कहलाते हैं।
  • सूंवटिया — भीलनी स्त्री द्वारा परदेस गए पति को इस गीत के द्वारा संदेश भेजा जाता है।
  • हमसीढ़ो — उत्तरी मेवाड़ के भीलों का प्रसिद्ध लोकगीत। इसे स्त्री और परुष साथ में मिलकर गाते हैं।
  • गणगौर — गणगौर पर स्त्रियों द्वारा गाया जाने वाला प्रसिद्ध लोकगीत जिसके बोल हैं:-“खेलन द्यो गणगौर, भँवर म्हानै खेलन दयो गणगौर ।” 
  • इंडोणी — इंडोणी सिर पर बोझा रखने हेतु सूत, मुंज, नारियल की जट या कपड़े की बनाई गई गोल चकरी है। इंडोणी पर स्त्रियों द्वारा पानी भरने जाते समय यह गीत गाया जाता है:- “म्हारी सवा लाख री लूम, गम गई इंडोणी।”
  • पीपली — यह रेगिस्तानी इलाकों विशेषत: शेखावाटी, बीकानेर तथा मारवाड के कुछ भागों में स्त्रियों द्वारा वर्षा में गया जाने वाला लोकगीत है। यह तीज के त्यौहार से कछ दिन पूर्व से गाया जाता है । यह गीत एक विरहणी के प्रमोदगारो को अभिव्यक्त करता है, जिसमें प्रेयसी अपनी परदेसी पति को बुलाती है।
  • जलो और जलाल — वधू के घर से स्त्रियाँ जब वर की बारात का डेरा देखने जाती है, तब यह गीत गाया जाता है, जिसके बोल हैं:- “म्हैं तो थारा डेरा निरखण आई ओ, म्हारी जोड़ी रा जळा।”
  • रसिया — ब्रज, भरतपुर, धौलपुर आदि क्षेत्रों में गाए जाने वाले गीत।
  • हरजन — राजस्थाना माहलाओ द्वारा गाए जाने वाले वे सगणभक्ति लोकगीत. जिनमें मख्यत: राम और कृष्ण दोनों का लीलाओं का वर्णन होता है।
  • लावणी — लावणी का मतलब बुलाने से है। नायक के द्वारा नायिका को बुलाने के अर्थ में लावणी गायी जाती है। शृंगारिक व भक्ति संबंधी लावणियाँ प्रसिद्ध है । मोरध्वज, सेऊसंमन, भरथरी आदि प्रमुख लावणियाँ हैं।
  • सीठणे — इन्हें ‘गाली’ गीत भी कहते हैं । ये विवाह समारोहों में खुशी व आत्मानंद के लिए गाए जाते हैं । हँसी-ठिठोली से भरे इन गाली गीतों से तनमन सराबोर हो उठता है।
  • जच्चा — बालक जन्मोत्सव पर गाए जाने वाले गीत जच्चा के गीत या होलर के गीत कहलाते हैं।
  • बधावागीत — शुभ कार्य सम्पन्न होने पर गाया जाने वाला लोकगीत, जिसमें आनन्द और उल्लास व्यक्त होता है।
  • घोड़ी — लड़के के विवाह पर निकासी पर गाए जाने वाले गीत। जिसके बोल हैं:- “घोडी म्हारी चंद्रमुखी सी, इंद्रलोक सँ आई ओ राज।”
  • बना-बनी — विवाह के अवसर पर गाए जाने वाले गीत।
  • कागा — इसमें विरहणी नायिका कौए को संबोधित करके अपने प्रियतम के आने का शगुन मनाती है और कौए को प्रलोभन देकर उड़ने को कहती है। जिसके बोल हैं:- “उड-उड़ रे म्हारा काळा रे कागला,जद म्हारा पिवजी घर आवै।”
  • लांगुरिया — करौली क्षेत्र की कल देवी ‘कैला देवी’ की आराधना मे गाए जाने वाले गीत। करौली क्षेत्र में शीतला माता के पूजन के साथ ही लांगुरिया पूजन होता है।
  • बीछूड़ो — हाडौती क्षेत्र का एक लोकप्रिय गीत है, जिसमें एक पत्नी, जिसे बिच्छु ने डस लिया है और मरने वाली है, अपने पति को दूसरा विवाह करने का संदेश देती है। जिसके बोल हैं:- “मैं तो मरी होती राज, खा गयो बैरी बीछूड़ो।”
  • घुड़ला — मारवाड़ क्षेत्र में होली के बाद घुड़ला त्यौहार के अवसर पर कन्याओं द्वारा गाये जाने वाला लोकगीत, जिसके मुख्य बोल हैं:“घुड़ळो घूमेला जी घूमेला, घुड़ले रे बाँध्यो सूत।”
  • पंछीड़ा — पंछीड़ा हाड़ौती व ढूँढाड़ क्षेत्र में मेलों के अवसर पर अलगोजे, ढोलक व मंजीरे के साथ गाये जाने वाला लोक गीत है। 
  • जीरो — इस गीत में ग्राम वधू अपने पति से जीरा नहीं बोने की विनती करती है। इसके बोल हैं:“यो जीरो जीव रो बैरी रे, मत बाओ म्हारा परण्या जीरो।”
  • हालरिया — जैसलमेर क्षेत्र में बच्चे के जन्म के अवसर पर गायी जाने वाली लोकगीत श्रृंखला जिसमें दाई, हारलोगोरा, धतूत खाँखलो व खटोड़ली आदि प्रमुख है।
  • केसरिया बालम — इस गीत में पति की प्रतीक्षा करती हुई एक नारी की विरह व्यथा है। यह एक रजवाड़ी गीत है।
  • चिरमी — इस लोक गीत में चिरमी के पौधे को संबोधित कर बाल ग्राम वधू द्वारा अपने भाई व पिता की प्रतीक्षा के समय की मनोदशा का चित्रण है

राजस्थान की लोक गायन शैलियाँ।।

  • माँड गायिकी – 10वीं सदी में जैसलमेर क्षेत्र ‘मांढ’ कहलाया था अतः इस क्षेत्र में गाई जाने वाली राग ‘माँड’ कहलाई। माँड गायिकी शास्त्रीय गायन की लोक शैली है। यह राजस्थान की एक श्रृंगार रसात्मक राग है। यहाँ की जैसलमेर मॉड, बीकानेरी माँड, जोधपुरी माँड, जयपुर की माँड आदि प्रसिद्ध हैं।
  • मांगणियार गायिकी – राजस्थानके पश्चिमी मरुस्थलीय सीमावर्ती क्षेत्रों बाड़मेर, जैसलमेर, जोधपुर आदि में मांगणिया जाति के लोगों द्वारा अपने यजमानों के यहाँ मांगलिक अवसरों पर गायी जाने वाली लोक गायन शैली, जिसमें मख्यतः । राग एवं 36 रागनियाँ होती हैं। मांगणियार मुस्लिम मूलतः सिंध प्रांत के हैं।
  • प्रमुख मांगणियार कलाकार – साफर खाँ मांगणियार, गफूर खाँ मांगणियार, गमड़ा खान मांगणियार, रुक्मादेवी, अकलादेवी, समन्दर खाँ मांगणियार, रमजान खाँ (ढोलक वादक), सद्दीक खाँ मांगणियार (प्रसिद्ध खड़ताल वादक), साकर खाँ मांगणियार (कमायचा वादक-हमीरा गाँव जैसलमेर)।
  • लंगा गायिकी – बीकानेर, बाड़मेर, जोधपुर एवं जैसलमेर जिले के पश्चिमी क्षेत्रों में मांगणियारों की तरह मांगिलक अवसरों एवं उत्सवों पर लंगा जाति के गायकों द्वारा गायी जाने वाली गायन शैली। लंगाओं की आजीविका भी इसी पर निर्भर है। सारंगी व कमायचा इनके प्रमुख वाद्य हैं। मूलतः राजपूत इनके यजमान होते हैं। प्रमुख लंगा कलाकार:- फूसे खाँ, महरदीन लंगा, अल्लादीन लंगा, करीम खाँ लंगा।
  • तालबंदी गायिकी – यह राजस्थान के पूर्वी अंचल-भरतपुर, धौलपुर, करौली एवं सवाईमाधोपुर आदि में लोक गायन की शास्त्रीय परम्परा है, जिसमें राग-रागनियों से निबद्ध प्राचीन कवियों की पदावलियाँ सामूहिक रूप से गायी जाती हैं। इसे ही ‘तालबंदी’ गायिकी कहते हैं।

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