राजस्थान जिला दर्शन (जयपुर) : जयपुर जिला दर्शन : Rajasthan jila darshan

By | May 26, 2021
jaipur jila darshan 

जयपुर जिला दर्शन : जयपुर जिले की सम्पूर्ण जानकारी

भारत का पेरिस’, ‘दूसरा वृन्दावन’ व ‘गुलाबीनगर’ (Pinkcity) के नाम से प्रसिद्ध जयपुर नगर का निर्माण महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय द्वारा 18 नवम्बर, सन् 1727 विद्याधर भट्टाचार्य के निर्देशन में करवाया। जयपुर, राजस्थान का नगर है, जिसको नक्शों के आधार पर बसाया गया। जयपुर की नींव जगन्नाथ पुण्डरीक रत्नाकर ने रखी थी। राजस्थान एकीकरण के चतुर्थ चरण 30 मार्च 1949 में ‘जयपुर’ को सम्मिलित किया गया एवं तब से ‘जयपुर’ ही राजस्थान की राजधानी है। चलो जयपुर के बारे(जयपुर जिला दर्शन ) में और जानते है :-

  • जयपुर शहर का पूर्व नाम जयनगर था।
  • जयपुर नरेश संवाई रामसिंह द्वितीय (1835-80) ने जयपुर की सभी इमारतों पर प्रिंस अलबर्ट एडवड (सम्राट एडवर्ड सप्तम) के जयपुर रग करवाया। तभी से जयपुर ‘गुलाबी नगर’ (Pink City) कहलाने लगा।
  • बिशप हैबर ने इस नगर के बारे में कहा था कि नगर का परकोटा मास्को के क्रेमलिन नगर के समान है।
  • जयपुर का क्षेत्रफल : 11143 वर्ग कि.मी. है।
  • जयपुर जिले में कुल वनक्षेत्र – 944.52 वर्ग किलोमीटर
  • इस जिले से सर्वाधिक विधानसभा सदस्य 19 चुने जाते है तथा दो लोकसभा सदस्य चुने जाते हैं।
  • जयपुर का आधुनिक निर्माता मिर्जा इस्माइल को कहते है।
  • इस जिले के दक्षिण में टोंक, दक्षिण पश्चिम में अजमेर, पश्चिम में नागौर व सीकर, उत्तर में हरियाणा का महेन्द्रगढ़ जिला तथा पूर्व में अलवर व दौसा जिले स्थित है।

जयपुर के प्रमुख मेले

  • गणगौर                     —- जयपुर 
  • बाणगंगा —- विराटनगर
  • शीतलामाता का मेला —- चाकसू
  • तीज की सवारी एवं मेला —- जयपुर

जयपुर जिले के हस्तशिप

  • जयपुर की पाव रजाई
  • मूर्ति व खिलौने
  • बंधेज, चूनरी, पोमचा, लहरिया, सांगानेरी प्रिंट
  • कुंदन का कार्य
  • जरी व गोटा
  • संगमरमर की मूर्तियों का निर्माण
  • मुरादाबादी का कार्य
  • चौमूं के खेस

जयपुर के प्रमुख मंदिर 

  • गलता , जयपुर —  जयपर के बनारस’ के नाम से प्रसिद्ध प्राचीन पवित्र कुण्ड। यहाँ गालव ऋषि का आश्रम था। वर्तमान में बंदरों की अधिकता के कारण यह Monkey Valley के नाम से प्रसिद्ध है। गलता को उत्तर तोताद्रि’ माना जाता है। संत कृष्णदास पयहारी ने यहाँ रामानन्दी सम्प्रदाय की पीठ की स्थापना की। मार्गशीर्ष कृष्णा प्रतिपदा को गलता स्नान का विशेष महात्म्य है। पर्वत की सर्वोच्च ऊँचाई पर सूर्य मंदिर (दीवान कृपाराम द्वारा निर्मित) है।
  • शीतला माता की मंदिर, चाकसू —  चाकसू में शील की डूंगरी नामक पहाड़ी पर शीतला माता का मंदिर है। शीतला माता का परम्परागत पुजारी कुम्हार होता है। यह मंदिर जयपुर के महाराजा श्री माधोसिंह जी ने बनवाया था। शीला माता कछवाह वंश की आराध्य देवी है। शीतला माता खंडित अवस्थ में पूजे जाने वाली एकमात्र देवी है। गधा इस देवी का वाहन व कुम्हार इस देवी का पुजारी माना जाता है। शीतलाष्टमी को यहाँ विशाल मेला लगता है
  • देवयानी, जयपुर — यह सांभर के निकट देवयानी ग्राम में स्थित एक पौराणिक तीर्थ है। यहाँ प्रसिद्ध देवयानी कुण्ड है। जिसमें वैशाख पूर्णिमा को विशाल स्नान पर्व का आयोजन होता है।
  • गणेश मंदिर — जवाहरलाल नेहरू मार्ग पर मोती डूंगरी की तलहटी में गणेश जी का मंदिर स्थित है, जो महाराजा माधोसिंह प्रथम के काल में बनाया गया। प्रतिवर्ष गणेश चतुर्थी पर मंदिर में विशाल मेला लगता है।
  • बिड़ला मंदिर (लक्ष्मी-नारायण मंदिर) —  इसका निर्माण प्रसिद्ध उद्योगपति गंगाप्रसाद बिड़ला के हिन्दुस्तान चैरिटेबल ट्रस्ट ने करवाया है। मंदिर का एक और आकर्षण है- बी.एम. बिड़ला संग्रहालय। इसमें भारत के औद्योगिक विकास तथा राजस्थानी वेशभूषा के क्रमबद्ध विकास की सजीव झाँकी देखने को मिलती है।
  • जगत शिरोमणि मंदिर — जगत शिरोमणि मंदिर, इस मंदिर का निर्माण राजा मानसिंह प्रथम की रानी कनकावती ने अपने पुत्र जगतसिंह (जो वि. संवत आमेर 1656 या सन् 1599 ई. में असमय मृत्यु को प्राप्त हुए थे), की याद में करवाया था। यह आमेर राज्य का सबसे अधिक विख्यात एवं भव्य प्रासाद है। कहा जाता है कि इस मंदिर के गर्भगृह में वही मूर्ति है, जिसकी मीरा आराधना किया करती थी। कृष्ण की इस कालो मूर्ति को मानसिंह जी चित्तौड विजय के पश्चात् यहाँ लाए थे। इसे स्थानीय लोग लालजी का मंदिर भी कहते हैं।
  • श्री गोविन्द देव जी मंदिर — श्री गोविन्द देव जी मंदिर गौड़ीय सम्प्रदाय के इस मंदिर का निर्माण सन् 1735 में जयपुर के संस्थापक सवाई जयसिंह द्वारा करवाया गया तथा यहाँ वृंदावन से लाई गोविंद देवजी की प्रतिमा प्रतिस्थापित की गई। यह मंदिर सिटी पैलेस के पीछे बने जयनिवास बगीचे के मध्य स्थित है। इस मंदिर में बना हुआ बिना खम्भों का सत्संग भवन दुनिया का सबसे बड़ा बिना खम्भों का सत्संग भवन होने का रिकॉर्ड बना चुका है। गौडीय सम्प्रदाय में राधा-कृष्ण के युगल स्वरूप की पूजा की जाती है। इस मंदिर में सखी ललिता व विशाखा की भी मूर्तियां स्थापित है।
  • चूलगिरी के जैन मंदिर  —  जयपुर-आगरा राष्ट्रीय राजमार्ग-11 पर जयपुर शहर के बाहर ऊँची पहाड़ी पर ये जैन मंदिर हैं। इसका निर्माण जैन आचार्य देशभूषण जी महाराज की प्रेरणा से कराया गया।  
  • पदमप्रभु मंदिर, —  जयपुर नगर से 35 किमी. दूर ग्राम पद्मपुरा (शिवदासपुरा) में यह विशाल दिगम्बर जैन मंदिर (पदमपुरा-बाड़ा) अतिशय क्षेत्र है। यहाँ चमत्कारी ढंग से भगवान पदम् प्रभु की प्रतिमा भूमि से प्रकट हुई थी।
  • जमुवाय माता का मंदिर — जमुवाय माता का मंदिर जयुपर के निकट जमवारामगढ़ में स्थित इस मंदिर का निर्माण कछवाहा वंश के संस्थापक दुलहराय ने करवाया था। जमुवाय माता आमेर के कछवाहों की कुल देवी है।
  • बृहस्पति मंदिर — राजस्थान का प्रथम बृहस्पति मंदिर जहाँ बृहस्पति भगवान की सवा पांच फिट ऊँची प्रतिमा स्थापित की गई है। बृहस्पति का रंग पीला माने जाने के कारण इस मूति का निर्माण पत्थरों से कराया गया है। देश का प्रथम बहस्पति मंदिर उज्जैन में है।
  • वामनदेव मंदिर — जयपुर जिले की शाहपुरा तहसील के मनोहरपर कस्बे के मध्य स्थित राज्य का एकमात्र वामनदेव मंदिर वास्तुकला का नायाब नमूना है।
  • अकबरी मस्जिद — यह जामा मस्जिद राजा भारमल ने आमेर में सन् 1569 में बनवाई।
  • नृसिंह मंदिर — आमेर में स्थापित इस मंदिर की प्रतिष्ठा राजा पृथ्वीराज की रानी बालाबाई के गुरु कृष्ण्दास पयहारी ने नृसिह की शालिग्राम रूप की मर्ति को एक कक्ष में प्रतिष्ठित कर का थी।

जयपुर के दर्शनीय स्थल

  • जलमहल — जयपुर-आमेर मार्ग पर मानसागर झील में स्थित जल महल के निर्माण का श्रेय सवाई जयसिंह को दिया जाता है। सवाई जयसिंह ने जयपुर की जलापूर्ति हेतु गर्भावती नदी पर बाँध बनवा कर मानसागर तालाब बनवाया। कहा जाता है कि सवाई जयसिंह ने अश्वमेघ यज्ञ में आमंत्रित ब्राह्मणों के भोजन व विश्राम की व्यवस्था इसी जलमहल में कराई थी। सवाई प्रतापसिंह ने इन महलों को आधुनिक रूप दिया।
  • हवामहल — गुलाबी नगरी के प्रतीक के रूप में विख्यात हुए हवामहल का निर्माण सन् 1799 महाराजा सवाई प्रतापसिंह ने लाल व गलाबी पत्थर से करवाया था। वास्तविद् लालचन्द उस्ताद न केवल 8 इंच की दीवार के सहारे इस 5 मंजिले पिरामिड आकार की खिड़कियों व ताखा (niches) से युक्त भवन का निर्माण किया। इसकी पाँच मंजिलों के नाम शरद मंदिर, रतन मंदिर, विचित्र मंदिर, प्रकाश मंदिर और हवामंदिर है। देशी निर्माण पद्धति से निर्मित हवामहल में प्रकाश व वायु संचार की अत्यंत आकर्षक एवं समुचित व्यवस्था है। यह महल राजपूत वास्तुकला एव मुगल वास्तुकला का सुंदर समन्वय है । इस महल के पिछले हिस्से में राज्य सरकार द्वारा 1983 ई. से हवामहल म्यूजियम का संचालन किया जा रहा है।
  • सिटी पैलेस (चन्द्रमहल) — यह जयपुर राजपरिवार का निवास स्थान था। दीवाने-आम में महाराजा का निजी पस्तकालय  (पोथीखाना) एवं शस्त्रागार (सिलहखाना) है। पूर्व के मुख्य द्वार को सिरह ड्योढ़ी कहते हैं। सात मंजिले इस महल का प्रथम तल सुखनिवास महल कहलाता है। चन्द्र महल का निर्माण सन 1729-32  के बीच सवाई जयसिंह द्वारा विद्याधर भट्टाचार्य के निर्देशन में करवाया गया था। इस महल के दीवाने-खास में चांदी के दो बड़े कलश ‘गंगाजलि’ आकर्षण का केंद्र हैं। 1902 में सम्राट एडवर्ड सप्तम के राज्याभिषेक समारोह में भाग लेने माधोसिंह द्वितीय पवित्र गंगाजल से भरकर ले गए। ये दुनिया में चाँदी के में गिनिज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में शामिल हैं। सिटी पैलेस का वास्तुकार याकूब था।
  • प्रीतम निवास — चंद्रमहल के दक्षिण में भव्य प्रीतम निवास बना हुआ है, जिसे सवाई प्रतापसिंह ने बनवाया था।
  • जय निवास उद्यान —  जय निवास उद्यान चंद्र महल के सामने स्थित उद्यान जिसे महाराजा सवाई जयसिंह ने बनवाया। इस उद्यान के उत्तर में ताल कटोरा है। इस उद्यान के ठीक मध्य में गोविन्द देव जी का मंदिर बना हुआ है।
  • स्टेच्यू सर्किल — जयपुर में स्थित इस भव्य सर्किल पर जयपुर के संस्थापक सवाई जयसिंह की मूर्ति लगी हुई है। इस मूर्ति के वास्तुकार स्व. महेन्द्र कुमार दास थे।
  • शीश महल — आमेर महल के आकर्षणों में से एक दीवान-ए-खास (शीश महल) का निर्माण मिर्जा राजा जयसिंह द्वारा पूर्ण किया गया। निर्माता के नाम पर इसे जयमंदिर और काँच की सुन्दर जड़ाई कार्य के आधार पर शीश महल कहते है। यह भवन दो मंजिला है। भूतल पर बना भवन जयमंदिर कहलाता है तथा प्रथम मंजिल पर बने भवन को जस मंदिर कहा जाता है। दीवान-ए-खास में राजा अपने खास मेहमानों तथा दूसरे देशों के राजदूतों से मिलते थे। शीश महल में महल की पटरानी महाराजा के साथ आराम किया करती थीं।
  • अल्बर्ट हाल — सन् 1876 में प्रिंस अल्बर्ट एडवर्ड (सम्राट एडवर्ड सप्तम) द्वारा शिलान्यास द्वारा रूपांकित यह इमारत भारतीय व फारसी शैली (Indo-Sarcenic Style) का मिश्रण है। यह  सवाई रामसिंह द्वितीय द्वारा अकाल राहत कार्यों के तहत प्रारंभ किया गया तथा महाराजा माधोसिह के काल में 21 फरवरी, 1887 को सर एडवर्ड ब्रेड फोर्ड ने इसका उद्घाटन किया। यह ईरान के बहुमूल्य गलीचा भी है, जो मिर्जा राजा जयसिंह को शाह ईरान द्वारा 1640 ई. में भेंट किया गया।
  • जंतर-मंतर — सवाई जयसिंह ने उज्बेकिस्तान के शासक उलूग बेग द्वारा समरकंद में बनवाई गई वेधशाला के परिवर्द्धित व परिष्कृत रूप में देश में 5 वेधशालाएँ बनवाई जो जंतर-मंतर के नाम से विख्यात है। सन् 1734 में सवाई जयसिंह द्वारा निर्मित यह वेधशाला उनकी पाँच वेधशालाओं में सबसे बड़ी वेधशाला है।
  • गैटोर की छतरियाँ — जयपुर के शासकों का शाही शमशान घाट। केवल सवाई ईश्वरा सिंह की छतरी यहां नहीं है । महाराजा सवाई जयसिंह-II से लेकर महाराजा माधोसिंह तक के राजाओ और उनके पुत्रो की स्मृति में ये छतरियाँ पंचायतन शैली में बनी है। 
  • कनक वृन्दावन मन्दिर — जलमहल के निकट स्थित मंदिर जिसका निर्माण सवाई जयसिंह द्वारा करवाया गया था।
  • सांगानेर — जयपर के दक्षिण में निकटवर्ती कस्बा जहाँ 11वीं सदी के संघीजी के जैन मंदिर प्रसिद्ध हैं। यह कस्बा कपडों की रंगाई-छपाई व हस्त निर्मित कागज निर्माण हेतु प्रसिद्ध है। इसका प्राचीन नाम संग्रामपुरा है। इसे कछवाहा राजकुमार सांगा ने बसाया था।
  • माधोराजपुरा का किला —
  • साल्ट म्यूजियम — नमक उत्पादन के लिए ख्याति प्राप्त सांभर झील के किनारे बना साल्ट म्यूजियम सन् 1909-10 में बनाया गया। गुम्बददार इस दो मंजिले विशाल भवन में नमक बनाने के यंत्र, विधियाँ मॉडल सांभर झील का मानचित्र तथा अन्य ऐतिहासिक दस्तावेज प्रदर्शित है।
  • विज्ञान उद्यान — जयपुर में 12 दिसम्बर, 1994 को स्थापित।
  • नरायणा — नरायणा में गौरीशंकर तालाब के निकट भोजराज के बाग में खंगारोत शासकों की भव्य छतरियाँ है।
  • अमर जवान ज्योति — जयपुर के सवाई मानसिंह स्टेडियम के मुख्य द्वार पर बने देश के इस दूसरे स्मारक में सेना के तीनों स्मारक अंगों के 1902 शहीदों के नाम लिखे गए है। इसे जयपुर के सुप्रसिद्ध वास्तुविद् अनूप बरतरिया की डिजाइन पर तैयार किया गया। मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे ने इस स्मारक का शिलान्यास 8 दिसम्बर, 2004 एवं लोकार्पण 16 अगस्त, 2005 को किया।
  • मोती महल — मोती डूंगरी पर निर्मित महल। यह महल सवाई मानसिंह की तीसरी रानी गायत्री देवी का निवास था। इस महल को अपनी सुंदरता के कारण मोतीमहल कहा जाता है। यह महल स्कॉटलैण्ड किले के रूप में बनाया गया है।

जयपुर के उद्यान

  • रामबाग — इसे केसर बड़ारण का बाग भी कहा जाता है जो सन् 1836 में बनाया गया। इसमें बने महलों को महाराजा रामसिंह द्वारा शाही मेहमानों, अतिथि राजाओं के ठहराने और बाद में स्वयं निवास हेतु प्रयुक्त होता था। वर्तमान में यह होटल रामबाग पैलेस के रूप में संचालित है।
  • नाटाणी का बाग — आमेर रोड़ पर जयपुर रियासत के महाराजा ईश्वरसिंह के काल में प्रधानमंत्री हरगोविन्द नाटाणी द्वारा यह बाग सन् 1745 में बनवाया था। वर्तमान में यह जयमहल पैलेस होटल के रूप में जाना जाता है।
  • माँजी का बाग — सवाई जयसिंह द्वितीय की सिसोदिया रानी के लिए 1729 में निर्मित सुरम्य उद्यान जो महाराजा माधोसिंह की माँ के निवास के कारण मांजी का बाग कहलाया। वर्तमान में यह राजमहल पैलेसहोटल के रूप में जाना जाता है।
  • कनक वृंदावन गार्डन — आमेर की पर्वतीय चढ़ाई से पहले प्राकृतिक वन क्षेत्र के मध्य हिन्दुस्तान चेरिटेबल ट्रस्ट की ओर से विकसित किया गया उद्यान।
  • रामनिवास उद्यान — महाराजा सवाई रामसिंह द्वितीय द्वारा अकाल राहत परियोजना के तहत निर्मित उद्यान । इसकी योजना मेजर डी-फैबैक ने तैयार की थी। इस उद्यान में चिड़ियाघर, अल्बर्ट संग्रहालय व रवीन्द्र रंगमंच स्थित है। यहाँ प्रदेश का एक मात्र प्राकृतिक इतिहास संग्रहालय स्थित है जो श्री कैलाश सांखला के प्रयासों से निर्मित किया गया।

जयपुर के महत्वपूर्ण तथ्य :-

  • सवाई जयसिंह ने 1727 ई. में जयपुर में टकसाल स्थापित की। जयपुर रियासत के सिक्के झाड़शाही कहलाते हैं।
  • जयपुर शहर के चारों ओर कुल 7 दरवाजे हैं–ध्रुव पोल, घाट गेट, न्यू गेट, सांगानेरी गेट, अजमेरी गेट, चाँदपोल गेट व सूरजपोल गेट।
  • जयपुर जनसंख्या की दृष्टि से राज्य का सबसे बड़ा नगर है।
  • जयपुर में सांभर झील तथा रामगढ़, कानोता, छापरवाड़ा और देवयानी प्रमुख बाँध है।
  • प्रसिद्ध भौतिक शास्त्री डॉ. सी.वी. रमन ने जयपुर शहर को आइलैण्ड ऑफ ग्लोरी’ (Iland of Glory या वैभव काद्वीप) कहा था।
  • हेडे की (छठ की) परिक्रमा : जयपुर में प्रतिवर्ष हेड़े की छह कोसी परिक्रमा (राधा-कृष्ण के स्वरूपों की झाँकी) पुराने घाट से प्रारम्भ होकर गोपाल जी के रास्ते में गोपाल जी के मंदिर में विसर्जित होती है।
  • बिड़ला वैज्ञानिक अनुसन्धान संस्थान एवं प्राद्योगिकी केन्द्रः बी.एम.बिडला फाउंडेशन ने जयपुर में स्टेच्यू सर्किल पर पा.एम. बिड़ला प्लेनेटोरियम एवं साइंस म्यूजियम हैं। इसका प्रारम्भ 17 मार्च, 1989 को किया गया था।
  • पेपरवेट संग्रहालय: यह संग्रहालय श्री गजेन्द्र जैन का निजी संग्रहालय है जिसमें विभिन्न प्रकार के पेपर वेट संग्रहीत किये गए है।
  • ढूँढ नदी के किनारे बसा जयपुर शहर राजस्थान की राजधानी है।
  • जयपुर के महाराजा कॉलेज की स्थापना सन् 1844 में तत्कालीन पॉलिटिकल एजेंट कैप्टन लुडलो ने की थी।
  • संदरता में इस नगर की तलना पेरिस से, आकर्षण में बडापोस्ट से तथा भव्यता में मॉस्को से की जाती है।
  • प्रधानमंत्री मिर्जा इस्माइल की भी इस नगर सौंदर्गीकरण में महती भूमिका है। उन्हें आधुनिक जयपुर निर्माता कहा जाता है।
  • सवाई जयसिंह ने सन् 1725 में नक्षत्रों की शुद्ध सारणी बनवाई जिसका नाम ‘जीज मुहम्मदशाही’ रखा गया। उसने स्वयं ‘जयसिंहकारिका’ नामक ज्योतिष ग्रंथ लिखा तथा अपने आश्रित विद्वान जगन्नाथ से यूक्लिड के रेखागणित का संस्कृत अनुवाद कराया। सिद्धान्त कौस्तुभ तथा सम्राट सिद्धान्त इसकी अन्य रचनाएँ है । दरबारी कवि पुण्डरीक रत्नाकर ने जयसिंह कल्पदम नामक ग्रंथ लिखा।
  • यह राज्य में सर्वाधिक जनसंख्या व सर्वाधिक घनत्व वाला जिला है।
  • जयपुर जू देश का प्रथम जंतुआलय है जहाँ घड़ियाल प्रजनन में सफलता प्राप्त हुई है।
  • हाथी गाँव . आमेर के निकटवर्ती कुण्डा गाँव को 19 जून, 2010 को हाथी गाँव घोषित किया गया। यहाँ एलिफेन्ट राइडिंग पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र है।
  • जयपुर चिड़ियाघर राज्य का सबसे प्राचीन चिड़ियाघर है।
  • जयपुर में मंदिरो की अधिकता के कारण इसे ‘राजस्थान की दूसरी काशी’, गलताजी को जयपुर की काशी’ व गोनेर को ‘जयपुर की मथुरा’ कहा जाता है।
  • जयपुर राज्य में उत्तर-पश्चिम रेल्वे का मुख्यालय है।

आशा करता हु की आप को जयपुर जिला दर्शन (राजस्थान जिला दर्शन )(Rajasthan gk) आप को पसंद आया होगा। इस पोस्ट में आप को जयपुर जिले की जानकारी, जयपुर के मेले , जयपुर के हस्तशिल्प , जयपुर के मंदिर और जयपुर के दार्शनिक स्थल बताए गए है। यह पोस्ट आपको पसंद आया तो जयपुर जिला दर्शन (राजस्थान जिला दर्शन) को  शेयर जरूर करे। और अपनी नॉलेज बढ़ाने के लिए हमारी वेबसाइट rajgktopic को विजिट करते रहे। धन्यवाद


यह भी पढ़े :-


Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *